जन्म के समय केवल नक्षत्र नहीं, सम्पूर्ण जन्म कुंडली का विश्लेषण जरूरी होता है
डॉ. उमाशंकर मिश्रा,लखनऊ : कुछ नक्षत्रों को ‘कोमल’, कुछ को ‘कठोर’ और कुछ को ‘उग्र’ माना जाता है। उग्र व तीक्ष्ण स्वभाव वाले नक्षत्रों को ही मूल नक्षत्र, सतैसा या गण्डांत कहा जाता है। जब बालक का जन्म इन नक्षत्रों में होता है, तो इसका सीधा प्रभाव उसके स्वास्थ्य, स्वभाव और जीवन के प्रारंभिक वर्षों पर देखा जाता है।
कौन-कौन से हैं मूल नक्षत्र?
मुख्य मूल नक्षत्र:
- मूल
- ज्येष्ठा
- आश्लेषा
सहायक मूल नक्षत्र:
- अश्विनी
- मघा
- रेवती
कुल मिलाकर 6 मूल नक्षत्र माने जाते हैं: अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल और रेवती।
इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले शिशुओं के स्वास्थ्य को लेकर विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। विशेष मान्यता है कि पिता को नवजात का मुख तब तक नहीं देखना चाहिए जब तक कि मूल नक्षत्र शांति संस्कार न हो जाए।
निर्णय केवल नक्षत्र के आधार पर नहीं
नवजात के जन्म के समय केवल नक्षत्र नहीं, अपितु सम्पूर्ण जन्म कुंडली का विश्लेषण जरूरी होता है। यदि कुंडली में चंद्रमा और बृहस्पति जैसे शुभ ग्रह मज़बूत स्थिति में हों, तो दुष्प्रभाव की आशंका काफी हद तक समाप्त हो जाती है। माता-पिता की कुंडली का भी विश्लेषण किया जाना चाहिए ताकि यह समझा जा सके कि नवजात का उनके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
मूल नक्षत्र में जन्मे बच्चों के लिए क्या करें?
- जन्म के 27वें दिन, जब वही नक्षत्र पुनः आता है, उस दिन मूल शांति संस्कार अवश्य कराएं।
- आठ वर्ष की आयु तक माता-पिता को प्रतिदिन “ॐ नमः शिवाय” का जाप करना चाहिए।
- आठ वर्ष के बाद मूल नक्षत्र का प्रभाव सामान्यतः समाप्त हो जाता है।
- यदि बालक का स्वास्थ्य बार-बार बिगड़ता है, तो माता को पूर्णिमा का व्रत रखने की सलाह दी जाती है।
विशेष नक्षत्रों हेतु उपासना विधियाँ
राशि | नक्षत्र | उपासना |
---|---|---|
मेष | अश्विनी | हनुमान जी की उपासना |
सिंह | मघा | सूर्य को अर्घ्य देना |
धनु | मूल | गुरु एवं गायत्री उपासना |
कर्क | आश्लेषा | शिव उपासना |
वृश्चिक | ज्येष्ठा | हनुमान उपासना |
मीन | रेवती | गणेश जी की उपासना |