विवेक के समान कोई बंधु नहीं है और एकादशी से बढ़कर कोई व्रत नहीं है
डॉ उमाशंकर मिश्रा,संवाददाता : विजया एकादशी का दिन अपने आप में बहुत शुभ माना जाता है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और पूजा-पाठ करते हैं। यह शुभ पर्व हर साल फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ता है। इस साल यह 24 फरवरी को मनाया जाएगा। कहते हैं कि इस दिन जो लोग उपवास रखते हैं, उन्हें सभी पूजा नियमों का पालन करना चाहिए और इसकी व्रत कथा का पाठ करना चाहिए। तभी यह व्रत पूर्ण माना जाता है, तो आइए यहां इस दिव्य कथा का पाठ करते हैं।
एकादशी के विषय में शास्त्र कहते हैं:
“न विवेकसमो बन्धुर्नैकादश्या: परं व्रतं”
अर्थात- विवेक के समान कोई बंधु नहीं है और एकादशी से बढ़कर कोई व्रत नहीं है।
पांच ज्ञान इंद्रियां, पांच कर्म इंद्रियां और एक मन, इन 11 को जो साध ले वह प्राणी एकादशी के समान पवित्र और दिव्य हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार शरीर रथ है और बुद्धि उस रथ की सारथी है। हमारे शरीर में कुल 11 इंद्रियां हैं और मन एकादश यानी ग्यारहवीं इंद्री है। एकादशी के दिन चंद्रमा आकाश में 11 वें अक्ष पर होता है और इस समय मन की दशा बहुत चंचल होती है, इसलिए एकादशी का व्रत करके मन को वश में किया जाता है। चंचल मन को एकाग्र करने के लिए एकादशी व्रत बहुत उपयोगी होता है।
एकादशी व्रत का वैज्ञानिक आधार:
हमारे शरीर में 75 प्रतिशत जल है, वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो हमारा मस्तिष्क हमारे द्वारा ग्रहण किए गए भोजन को समझने में 3 से 4 दिन लगाता है। अमावस्या और पूर्णिमा के दिन वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी के चारों ओर सबसे ज्यादा होने के कारण इन दोनों ही तिथियों में हमारे मन और मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में, एकादशी के दिन व्रत करने से इसका सकारात्मक प्रभाव अमावस्या और पूर्णिमा तिथियों तक मिलता है जिससे मन चंचल नहीं रहता है, डिप्रेशन और तनाव की समस्या नहीं होती है और एकाग्रता बढ़ती है। चूंकि एकादशी के दिन, अमावस्या और पूर्णिमा तिथियों की तुलना में वायुमंडलीय दबाव सबसे कम होता है, इसलिए एकादशी के दिन व्रत करने से शरीर बहुत आसानी से और बिना किसी तकलीफ के शुद्ध होता है, जिससे हमारा मन और शरीर स्वस्थ बना रहता है।
एकादशी को वर्जित है चावल
चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होती है क्योंकि चावल की खेती पूरी पानी में होती है, इसलिए इसमें जल का प्रभाव अधिक होता है और जल पर चंद्रमा का प्रभाव बहुत होता है। चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है, जिससे मन विचलित और चंचल होता है। इसका कारण है चंद्रमा का संबंध जल से होना, वह जल को अपनी ओर आकर्षित करता है। एकादशी का व्रत रखने वाला व्यक्ति अगर चावल खाए तो चंद्रमा की किरणें उसके शरीर के संपूर्ण जलीय अंश को तरंगित करेंगी, जिसके परिणामस्वरूप वह व्रत के अन्य कर्म-स्तुति पाठ, जप, श्रवण नहीं कर पाएगा। मन के चंचल होने से व्रत के नियमों का पालन करने में बाधा आती है, इसलिए चावल खाना वर्जित होता है।
एकादशी व्रत के नियम:
- एकादशी व्रत में किसी भी तरह का अनाज (अन्न) इत्यादि का सेवन नहीं किया जाता।
- इस दिन झूठ, हिंसा, काम-क्रोध, ईर्ष्या, लोभ, अहंकार आदि से दूर रहना चाहिए।
- सुबह जल्दी स्नान करके भगवान की पूजा अर्चना की जाती है, इस दिन ज्यादा से ज्यादा भगवान का स्मरण व जप इत्यादि करने का विधान है।
- इस दिन आवश्यक होने पर दूध, दूध से बने पदार्थ, फल-सब्जियां, जूस आदि का सेवन भगवान के भोग लगाने के बाद प्रसाद स्वरूप किया जा सकता है।
- भगवान के भोग लगाने में तुलसी दल का जरूर उपयोग करें, क्योंकि भगवान को बिना तुलसी के भोग नहीं लगता।
- व्रत के अगले दिन पारण के समय पर भगवान को सात्विक भोजन का भोग लगाने के बाद भोजन प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोला जा सकता है।
- एकादशी व्रत रखने वाले जातकों को व्रत खोलने से पहले दान-पुण्य-सेवा-परोपकार इत्यादि के कार्य जरूर करने चाहिए।