वैवाहिक सुख की कुंजी कुंडली के सप्तम भाव में छिपी होती है
डॉ उमाशंकर मिश्र,लखनऊ : जीवन में चाहे कितना भी धन, व्यापार, प्रतिष्ठा या ऐशो-आराम क्यों न हो, यदि पति-पत्नी के बीच तालमेल नहीं है तो सम्पूर्ण जीवन में अशांति व्याप्त हो जाती है। वैवाहिक सुख की कुंजी कुंडली के सप्तम भाव में छिपी होती है।
क्या है सप्तम भाव और इसका महत्व
सप्तम भाव को जन्मकुंडली में दाम्पत्य जीवन, विवाह, जीवनसाथी और वैवाहिक सुख का सूचक माना जाता है। यह भाव लग्न से ठीक सातवाँ होता है।
इस भाव में यदि शुभ ग्रह स्थित हों, या स्वामी की स्थिति शुभ हो, तो जीवन में वैवाहिक संतुलन बना रहता है। किंतु यदि इस भाव में अशुभ ग्रह जैसे शनि का प्रभाव हो, तो कई तरह की वैवाहिक समस्याएँ जन्म ले सकती हैं।
सप्तम भाव में शनि के प्रभाव: एक विस्तृत विश्लेषण
- विवाह में विलंब: सप्तम भाव में शनि होने पर सामान्यतः विवाह में विलंब होता है।
- नीच शनि: यदि शनि नीच राशि में हो, तो जातक से अधिक उम्र वाले जीवनसाथी से विवाह की संभावना बनती है।
- शनि और चंद्रमा की युति: वैवाहिक जीवन में भावनात्मक दूरी और गृहकलह की स्थिति उत्पन्न होती है।
- प्रेम की कमी: ऐसे जातक अपने जीवनसाथी के प्रति उदासीन हो जाते हैं और बाहरी आकर्षण में उलझ सकते हैं।
- शनि युक्त सप्तम भाव: गृहस्थी जीवन से मन उचाट होता है और विवाहिक असंतोष बना रहता है।
- शनि और नवमांश कुंडली: नवमांश या जन्म कुंडली में सप्तम भाव में शनि हो, तो विवाह में देरी और दांपत्य जीवन में अस्थिरता देखी जाती है।
कब करें विवाह? – एक ज्योतिषीय परामर्श
- जिनकी कुंडली में शनि सप्तम भाव में है या नवमांश में भी यही स्थिति है, उन्हें 30 वर्ष की आयु के बाद ही विवाह करने की सलाह दी जाती है।
- लग्न कमजोर हो, सूर्य द्वितीय भाव का स्वामी हो, और शनि द्वादश भाव में हो — तो विवाह में अत्यधिक विलंब हो सकता है या जीवनभर विवाह संभव न हो।
उपाय: कैसे करें शनि का शमन?
- नियमित रूप से शनि देव की पूजा करें।
- शनिवार को पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाएं।
- तिल, तेल, काले वस्त्र, काली उड़द का दान करें।
- हनुमान चालीसा और शनि स्तोत्र का पाठ करें।
- ज्योतिषाचार्य से शनि की दशा/अंतर्दशा का विशेष परामर्श लें।