वायु सेना में पायलटों और 26% स्क्वाड्रन की कमी
नई दिल्ली,संवाददाता : भारत की वायु शक्ति की रीढ़ मानी जाने वाली भारतीय वायु सेना इस समय गंभीर आंतरिक संकट से जूझ रही है। स्क्वाड्रन की भारी कमी, प्रशिक्षित पायलटों का अभाव, आधुनिकीकरण में देरी और सिकुड़ता रक्षा बजट जैसे कारकों ने वायु सेना की युद्धक तैयारियों पर गहरा असर डाला है।
वायु सेना को पूर्ण परिचालन क्षमता के लिए 42 स्क्वाड्रन की आवश्यकता है, परंतु वर्तमान में मात्र 31 स्क्वाड्रन उपलब्ध हैं। इनमें से भी दो स्क्वाड्रन अब भी पुराने मिग-21 विमान चला रहे हैं, जो तकनीकी रूप से अप्रचलित हो चुके हैं और बार-बार हादसों का कारण बने हैं। 2015 में हुए विवादास्पद राफेल सौदे के बाद वायु सेना के लिए कोई नया लड़ाकू विमान नहीं खरीदा गया है। अगली पीढ़ी के भारतीय विमान के आने में अभी कम से कम 2035 तक का समय लग सकता है।
जबकि चीन ने छठी पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर का प्रदर्शन शुरू कर दिया है और पाकिस्तान को चीन से उन्नत सैन्य तकनीक मिलने की आशंका है, भारत की तैयारी तकनीकी रूप से पिछड़ती नजर आ रही है। 2015 में पायलटों की कमी 486 थी, जो 2021 तक बढ़कर लगभग 600 हो गई। इस समय यह संख्या और भी अधिक हो सकती है। अग्निवीर योजना से स्थिति और जटिल हो गई है, क्योंकि चार साल की सेवा अवधि में उच्च तकनीकी प्रशिक्षण संभव नहीं माना जा रहा।
भारत का रक्षा बजट GDP के अनुपात में ऐतिहासिक रूप से न्यूनतम स्तर पर है। 52% बजट वेतन और पेंशन में खर्च हो जाता है, जिससे आधुनिकीकरण और विमान खरीद के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं बचते। वायु सेना प्रमुख ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि शीघ्र ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो भारत को चीन या पाकिस्तान के साथ संघर्ष की स्थिति में भारी सामरिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। वायु सेना ने सरकार से नए विमानों की खरीद, प्रशिक्षण सुविधाओं में सुधार, और रक्षा बजट में वृद्धि की मांग की है।