शादी के बाद वैवाहिक संबंधों में सामंजस्य बनाए रखने के लिए शयन कक्ष का महत्व
डॉ उमाशंकर मिश्र,लखनऊ : शादी के बाद वैवाहिक संबंधों में कोई खटास न हो और पति का झुकाव कहीं और न हो, इसके लिए शयन कक्ष का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। वास्तुशास्त्र के अनुसार शयन कक्ष के स्थान और उसके अंदर की व्यवस्थाओं का संबंध न केवल शारीरिक स्वास्थ्य से, बल्कि मानसिक और वैवाहिक संबंधों से भी होता है।
- बिस्तर की दिशा: बिस्तर को उत्तर की दीवार में रखना गलत माना जाता है क्योंकि उत्तर दिशा धनात्मक चुम्बकीय दिशा है और इसका विपरीत असर नींद पर पड़ सकता है।
- टीवी और दर्पण: शयन कक्ष में सामने दक्षिण दीवार पर टीवी होना भी दोषपूर्ण है। वास्तुशास्त्र के अनुसार, यदि बिस्तर के सामने दर्पण या टीवी हो, तो यह नींद में रुकावट डाल सकता है, क्योंकि आत्मा गहरी नींद के दौरान बाहर निकलती है और दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखकर लौट आती है, जिससे नींद में बाधा उत्पन्न होती है।
- प्रकाश और खिड़कियाँ: शयन कक्ष में बहुत बड़ी खिड़की होने से अत्यधिक प्रकाश और ऊर्जा कमरे में प्रवेश कर सकती है, जो कि दोषपूर्ण है। शयन कक्ष में कम प्रकाश होना चाहिए, और रात में रोशनी को कम करके अधिक शांति का माहौल बनाए रखना चाहिए। यदि बड़ी खिड़की हो, तो गहरे रंग के पर्दे लगाकर प्रकाश को नियंत्रित किया जा सकता है।
- तेज प्रकाश और संगीत: तेज प्रकाश और तेज संगीत की उपस्थिति से ऊर्जा तेजी से विकसित होती है। हालांकि, नवयुगल के कमरे में यह उचित नहीं है, जहां शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण वातावरण बनाए रखना जरूरी होता है।
- कमरे की रंग योजना: नवयुगल के कमरे के रंग चटकदार और आकर्षक होने चाहिए। कमरे में प्रवेश करते ही एक-दूसरे की ओर आकर्षित होना चाहिए। इसके साथ ही इत्र का उपयोग भी नवयुगल के कमरे में किया जाता है, ताकि शांति और सौम्यता बनी रहे।
इन वास्तु टिप्स का पालन करने से न केवल आपके शयन कक्ष में संतुलन और ऊर्जा का प्रवाह सही रहेगा, बल्कि इससे वैवाहिक संबंधों में भी नयापन और सामंजस्य बना रहेगा।