कांवड़ यात्रा के हर कदम से मिलता है अश्वमेघ यज्ञ जैसा फल, साक्षात शिव स्वरूप है यात्रा
*सावन* विशेष:
डॉ उमाशंकर मिश्रा, ज्योतिषाचार्य, लखनऊ:
कांवड़ यात्रा के जरिए जो शिव की आराधना कर लेता है, वह धन्य हो जाता है। कांवड़ का अर्थ है परात्पर शिव के साथ विहार। जो शिव में रमन करे वह कांवरिया। कैलाश मानसरोवर, अमरनाथ यात्रा, शिवजी के द्वादश ज्योतिर्लिंग दर्शन महंगे और कठिन यात्रा के चलते सबके सामर्थ्य में नहीं होते। ये यात्राएं इतनी सरल नहीं है, लेकिन कांवड़ यात्रा की बढ़ती लोकप्रियता ने सभी रिकार्ड्स तोड़ दिए हैं। इलाहाबाद, वाराणसी, बिहार नीलकंठ (हरिद्वार), पुरा महादेव (पश्चिमी उत्तरप्रदेश) हरियाणा, राजस्थान के देवालय आदि में सैकड़ों-हजारों से होता हुआ कांवडिया जलाभिषेक लाखों-करोड़ों तक जा पहुंचा है।
वैसे तो भगवान शिव का अभिषेक भारतवर्ष के सारे शिव मंदिरों में होता है, लेकिन श्रावण मास में कांवड़ के माध्यम से जल-अर्पण करने से वैभव और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। वेद-पुराणों सहित भगवान भोलेनाथ में भरोसा रखने वालों को विश्वास है कि कांवड़ यात्रा में जहां-जहां से जल भरा जाता है, वह गंगाजी की ही धारा होती है। कांवड़ के माध्यम से जल चढ़ाने से मन्नत के साथ-साथ चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। यात्रा का प्रत्येक कदम अश्वमेघ यज्ञ जैसा फल देता है।
सावन शुरु होते ही इस आस्था और अटूट विश्वास की अनोखी कांवड यात्रा से कुछ सुनाई देता है तो वो है हर-हर महादेव की गूंज, बोलबम का नारा। शिव भूतनाथ, पशुपतिनाथ, अमरनाथ आदि सब रूपों में कहीं न कहीं जल, मिट्टी, रेत, शिला, फल, पेड़ के रूप में पूजनीय हैं। जल साक्षात् शिव है, तो जल के ही जमे रूप में अमरनाथ हैं। बेल शिववृक्ष है तो मिट्टी में पार्थिव लिंग है। गंगाजल, पारद, पाषाण, धतूराफल आदि सबमें शिव सत्ता मानी गई है। अतः सब प्राणियों, जड़-जंगम पदार्थों में स्वयं भूतनाथ पशुपतिनाथ की सुगमता और सुलभता ही तो आपको देवाधिदेव महादेव सिद्ध करती है।
कांवड़ शिव के उन सभी रूपों को नमन है। कंधे पर गंगा को धारण किए श्रद्धालु इसी आस्था और विश्वास को जीते हैं। यूपी, बिहार सहित दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान तक में कांवड़ लाने का प्रचलन है। घरों में भी प्रायः श्रद्धालु शिवालयों में जाकर सावन मास में भगवान शिव का जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक, करते हैं।
पंचामृत अभिषेक से शिव जी की पूजा कल्याणकारी
खासतौर से श्रावण मास के सोमवार को शिव का पूजन बेलपत्र, भांग, धतूरे, दूर्वाकुर आक्खे के पुष्प और लाल कनेर के पुष्पों से पूजन करने का प्रावधान है। इसके अलावा पांच तरह के जो अमृत बताए गए हैं उनमें दूध, दही, शहद, घी, शर्करा को मिलाकर बनाए गए पंचामृत से भगवान आशुतोष की पूजा कल्याणकारी होती है। भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने के लिए एक दिन पूर्व सायंकाल से पहले तोड़कर रखना चाहिए। सोमवार को बेलपत्र तोड़कर भगवान पर चढ़ाया जाना उचित नहीं है। भगवान भोलेनाथ के साथ शिव परिवार, नंदी व भगवान परशुराम की पूजा भी श्रावण मास में लाभकारी है। शिव की पूजा से पहले नंदी व परशुराम की पूजा की जानी चाहिए। शिव का जलाभिषेक नियमित रूप से करने से वैभव और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।
इस प्रकार के कांवड़
डाक कांवड़ : – डाक कांवडि़या कांवड़ यात्रा की शुरुआत से शिव के जलाभिषेक तक लगातार चलते रहते हैं, बगैर रुके। शिवधाम तक की यात्रा एक निश्चित समय में तय करते हैं। यह समय अमूमन 24 घंटे के आसपास होता है। इस दौरान शरीर से उत्सर्जन की क्रियाएं तक वर्जित होती हैं।
खड़ी कांवड़ : – कुछ भक्त खड़ी कांवड़ लेकर चलते हैं। इस दौरान उनकी मदद के लिए कोई-न-कोई सहयोगी उनके साथ चलता है। जब वे आराम करते हैं, तो सहयोगी अपने कंधे पर उनकी कांवड़ लेकर कांवड़ को चलने के अंदाज में हिलाते-डुलाते रहते हैं।
दांडी कांवड़ : – ये भक्त नदी तट से शिवधाम तक की यात्रा दंड देते हुए पूरी करते हैं। मतलब कांवड़ पथ की दूरी को अपने शरीर की लंबाई से लेट कर नापते हुए यात्रा पूरी करते हैं। यह बेहद मुश्किल होता है और इसमें एक महीने तक का वक्त लग जाता हैइस यात्रा में बिना नहाए कांवड़ यात्री कांवड़ को नहीं छूते। तेल, साबुन, कंघी की भी मनाही होती है। यात्रा में शामिल सभी एक-दूसरे को भोला या भोली कहकर ही बुलाते हैं।
विश्व कल्याण की कांवड़ यात्रा:- विषपान की घटना सावन महीने में हुई थी, तभी से यह क्रम अनवरत चलता आ रहा है। कांवड़ यात्रा को आप पदयात्रा को बढ़ावा देने के प्रतीक रूप में मान सकते हैं। पैदल यात्रा से शरीर के वायु तत्व का शमन होता है। कांवड़ यात्रा के माध्यम से व्यक्ति अपने संकल्प बल में प्रखरता लाता है। वैसे साल के सभी सोमवार शिव उपासना के माने गए हैं, लेकिन सावन में चार सोमवार, श्रावण नक्षत्र और शिव विवाह की तिथि पड़ने के कारण शिव उपासना का माहात्म्य बढ़ जाता है।
प्रसाद हैं पैरों के छाले : – कांवड़ लाने वाले लोगों की संख्या हाइवे पर बढ़ने के साथ ही उनकी सेवा करने वालों की संख्या बढ़ गई है। कांवड़ लेकर आने वाले लोगों के पैरों में पैदल चलते-चलते छाले पड़ने लगे है। भक्तों को पैरों में छाले एवं बदन दर्द परेशान कर रहा है, लेकिन वह इसे भोले बाबा का प्रसाद मानकर अपनी यात्रा पूरी करने में जुटे हैं।