यूपीएसएसएससी की परीक्षा में पूछा गया बिजली निजीकरण पर प्रश्न
लखनऊ, संवाददाता : उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने प्रदेश में ऊर्जा निगमों के प्रस्तावित निजीकरण पर कड़ा रुख अपनाते हुए राज्य सरकार और उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) प्रबंधन से पांच सीधे सवाल पूछे हैं। रविवार को परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि प्रदेश में बिजली वितरण कंपनियों के निजीकरण की प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव है और इससे उपभोक्ता, कर्मचारी और बेरोजगार युवा सभी प्रभावित होंगे।
परिषद ने सवाल किया है कि —
- क्या निजीकरण से बिजली दरों में व्यापक बढ़ोतरी नहीं होगी?
- क्या सरकारी संपत्ति कम दामों में निजी हाथों में नहीं जाएगी?
- क्या सरकारी क्षेत्र में नौकरी का सपना देख रहे लाखों युवा निराश नहीं होंगे?
- क्या आरक्षण के लगभग 16,000 पद समाप्त नहीं हो जाएंगे?
- क्या इससे देश के कुछ बड़े निजी घरानों को अत्यधिक लाभ नहीं पहुंचेगा?
अवधेश कुमार वर्मा ने कहा, “अगर प्रदेश सरकार को लगता है कि निजीकरण का यह कदम जनहित में है, तो उसे वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव में इसे अपने संकल्प पत्र में शामिल करना चाहिए। इससे ‘ट्रेलर’ देखने को मिल जाएगा कि जनता किसके पक्ष में है और किसके खिलाफ।”
परिषद के अध्यक्ष ने यह भी उल्लेख किया कि हाल ही में उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UPSSSC) द्वारा आयोजित जूनियर असिस्टेंट पद की लिखित परीक्षा में निजीकरण से संबंधित सवाल पूछे गए। परीक्षा में पूछा गया कि “बिजली घाटे और बुनियादी ढांचे के मुद्दों को हल करने के लिए प्रदेश में किन दो बिजली वितरण कंपनियों के निजीकरण पर विचार किया जा रहा है?”
वर्मा ने कहा कि यह प्रश्न इस बात का संकेत है कि सरकार निजीकरण की दिशा में पहले ही कई कदम आगे बढ़ा चुकी है। उन्होंने सवाल किया कि जब 2022 के विधानसभा चुनाव के समय भाजपा ने चार करोड़ उपभोक्ताओं से सुझाव लेकर जो संकल्प पत्र तैयार किया, उसमें 42 जिलों के निजीकरण का कोई उल्लेख नहीं था, तो अब यह प्रक्रिया जनता की राय के विपरीत कैसे हो रही है? उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि यह मुद्दा न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत संवेदनशील है।