लंबे इंतजार के बाद, रामनवमी पर विशेष पूजा और भंडारे के साथ पूरे गांव ने मनाया उत्सव
दंतेवाड़ा,संवाददाता : नक्सल प्रभावित सुकमा जिले के केरलापेंदा गांव में इस बार रामनवमी का पर्व ऐतिहासिक उल्लास और आस्था के साथ मनाया गया। एक समय था जब नक्सलियों ने गांव के राम मंदिर में पूजा-अर्चना पर रोक लगा दी थी, लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है। लगभग 21 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद, रामनवमी पर विशेष पूजा और भंडारे के साथ पूरे गांव ने उत्सव मनाया।
ग्रामीणों के अनुसार, 2003 में नक्सलियों ने फरमान जारी कर मंदिर में पूजा पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी थी, जिसके कारण मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए थे। उस समय तक गांव के 25-30 परिवार नियमित रूप से पूजा करते थे, लेकिन धीरे-धीरे यह संख्या घटकर 12 परिवारों तक सीमित हो गई। ग्रामीणों का कहना है कि 2024 में सीआरपीएफ कैंप की स्थापना के बाद मंदिर में पूजा पुनः शुरू हुई, जिससे गांव में नई ऊर्जा और विश्वास का संचार हुआ। हेमला जोगा, एक ग्रामीण, ने बताया, “सीआरपीएफ के जवानों के सहयोग से मंदिर की सफाई कर पूजा फिर से शुरू की गई। इस साल रामनवमी पर विशेष आयोजन कर हमने अपनी आस्था की वापसी का जश्न मनाया।”
1970 में बिहारी दास महाराज के मार्गदर्शन में गांववासियों ने इस मंदिर की स्थापना की थी। उस समय सड़क या वाहन की सुविधा नहीं थी, और ग्रामीणों ने 80 किमी दूर सुकमा से सीमेंट, पत्थर, बजरी और सरिया अपने कंधों पर ढोकर लाए थे। सामूहिक श्रमदान से मंदिर का निर्माण हुआ था, और इसके साथ ही गांव में धार्मिक आचार-संहिता लागू की गई थी। मंदिर की स्थापना के बाद, गांव के अधिकांश लोगों ने कंठी धारण कर मांस और मदिरा का त्याग किया, जबकि यह आदिवासी क्षेत्र में आम जीवनशैली का हिस्सा था।
नक्सलियों ने गांव के शांतिप्रिय स्वभाव और नक्सल विरोधी आस्था के कारण 2003 में जबरन पूजा बंद करवा दी थी। अब, सीआरपीएफ कैंप की स्थापना और नक्सलियों की दबाव की कमी के बाद, गांव में फिर से धार्मिक और सामाजिक शांति का माहौल बन चुका है। इस बार रामनवमी पर जो उत्सव मनाया गया, वह केवल एक धार्मिक घटना नहीं, बल्कि गांव के पुनर्निर्माण और आस्था की वापसी का प्रतीक था। 21 साल बाद इस पर्व के ऐतिहासिक उल्लास ने सभी को यह संदेश दिया कि विश्वास और समर्पण के साथ, कोई भी मुश्किल समय कभी भी खत्म हो सकता है।