बोले सिंघवी, केजरीवाल का नाम 2022 में दर्ज मुकदमे में नहीं था और उन्हें वर्ष 2024 जून में गिरफ्तार किया गया था
दिल्लीः सीबीआई मामले में शीर्ष अदालत के समक्ष सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने मुख्यमंत्री को जमानत दिए जाने की दलीलों का पुरजोर विरोध किया। कहा कि अधीनस्थ अदालत को दरकिनार करने की अनुमति केवल असाधारण परिस्थितियों में ही दी जा सकती है।इस पर केजरीवाल का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी थी कि सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत आरोपित को नोटिस जारी करने के संबंध में वर्तमान याचिका में उठाए गए आधारों पर हिरासत के दौरान बहस की गई थी। इसके बाद विशेष अदालत ने उसे खारिज कर दिया था, इसलिए याचिकाकर्ता को फिर से उसी मुद्दे पर वहां बहस करने के लिए वापस भेजना न्यायोचित नहीं होगा।पीठ के समक्ष गुरुवार पांच सितंबर 2024 को श्सिंघवी ने कहा, “शायद यह एकमात्र ऐसा मामला है, जिसमें मुझे (केजरीवाल) इस अदालत से सख्त धन शोधन रोकथाम अधिनियम के तहत दो रिहाई आदेश मिले। उच्च न्यायालय से एक और विस्तृत आदेश मिला। फिर सीबीआई द्वारा पहले से तय गिरफ्तारी हुई।”शीर्ष अदालत को सिंघवी ने यह भी बताया कि श्री केजरीवाल का नाम 2022 में दर्ज मुकदमे में नहीं था और उन्हें वर्ष 2024 जून में गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने कहा, “तीन अदालती आदेश मेरे पक्ष में हैं। यह एक पहले से तय की गई गिरफ्तारी है, ताकि उन्हें (मुख्यमंत्री) जेल में रखा जा सके।”वरिष्ठ अधिवक्ता ने श्री केजरीवाल का पक्ष रखते हुए आगे कहा, “सबूतों के साथ छेड़छाड़ का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि लाखों दस्तावेज हैं, जिनमें से कई तो डिजिटल हैं। उनके मुवक्किल न्यायिक हिरासत में रहते हुए गवाहों को कैसे प्रभावित कर सकते हैं और इस मामले में पांच आरोप पत्र भी दाखिल किए गए हैं।”उन्होंने दिल्ली आबकारी नीति मामले से संबंधित अन्य आरोपियों – दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, सांसद संजय सिंह और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की विधान पार्षद के. कविता के जमानत आदेशों का हवाला दिया। शीर्ष अदालत ने उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया था।श्सिंघवी ने आगे कहा कि सीआरपीसी की धारा 41ए को 2010 में गिरफ्तारियों को विनियमित करने के लिए पेश किया गया था। इसका उद्देश्य मनमानी गिरफ्तारियों को रोकना और यह सुनिश्चित करना था कि कानून प्रवर्तन अधिकारी बिना किसी वैध आधार के किसी को गिरफ्तार न कर सकें।दूसरी ओर श्राजू ने केजरीवाल की याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि उन्होंने पहले सत्र न्यायालय में गुहार लगाने की बजाय सीधे उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।उन्होंने कहा, “यह मेरी प्रारंभिक आपत्ति है। गुण-दोष के आधार पर अधीनस्थ अदालत को पहले इस पर विचार करना चाहिए था। उच्च न्यायालय को गुण-दोष देखने के लिए बनाया गया था और यह केवल असाधारण मामलों में ही हो सकता है। सामान्य मामलों में पहले सत्र न्यायालय का रुख करना पड़ता है। वह (केजरीवाल) यहां आए और फिर उन्होंने उच्च न्यायालय का रुख किया और वह फिर से शीर्ष अदालत आए।”एडिशनल सॉलिसिटर जनरल राजू ने यह भी दावा किया कि श्री केजरीवाल ने अपनी पार्टी के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार के माध्यम से पंजाब के एक आबकारी लाइसेंस धारक को परेशान करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि आरोपी को कोई भी राहत उच्च न्यायालय पर मनोबल गिराने वाला प्रभाव डालेगी।पीठ ने हालांकि कहा कि उन्हें (राजू को) यह दलील नहीं देनी चाहिए थी। इस पर श्री राजू ने स्पष्ट किया कि उनके खिलाफ सीबीआई की चार्जशीट उच्च न्यायालय के समक्ष उपलब्ध नहीं थी।उन्होंने कहा कि किसी विशेष व्यक्ति के लिए जमानत के संबंध में विशेष व्यवहार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कानून में कोई विशेष व्यक्ति नहीं है और सभी ‘आम आदमी’ को सत्र न्यायालय जाना होगा।’गवाहों के बयान पढ़ते हुए श्राजू ने दावा किया था कि इससे संकेत मिलता है कि श्री केजरीवाल दिल्ली आबकारी नीति मामले में ‘मुख्य साजिशकर्ता’ हैं।मिलीभगत का लगाया आरोपःचुनाव में रिश्वत के पैसे के इस्तेमाल का दावा करते हुए राजू ने कहा था कि गोवा में कई अन्य लोग भी इस मामले में फंसे हुए हैं और अगर श्री केजरीवाल जमानत पर बाहर आते हैं तो वे गवाह मुकर सकते हैं।उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक हलफनामे में सीबीआई ने श्री केजरीवाल को गिरफ्तार करने के अपने निर्णय को उचित ठहराते हुए दावा किया कि नई आबकारी नीति तैयार करने में सभी महत्वपूर्ण निर्णय दिल्ली के मुख्यमंत्री के इशारे पर तत्कालीन उपमुख्यमंत्री एवं आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया के साथ मिलीभगत करके लिए गए थे। ये फैसले 100 करोड़ रुपये की रिश्वत के लिए किए गए थे।