राजा बली के हिरण्यकश्यपु थे परबाबा और प्रहलाद थे बाबा, वामन भगवान ने बली को याद दिलाया कि वो भी जो कहते थे करते थे
लखनऊ: भरतनगर निवासी शैलबाला के आवास पर चल रही कथा में कथा व्यास पंडित गरुडध्वज वाजपेयी महाराज ने वामन भगवान का सुंदर प्रसंग सुनाया। कहा कि नर्मदा नदी के उत्तर किनारे पर राज बली विशाल यज्ञ कर रहा था। जिसके आचार्य स्वयं आचार्य शुक्रराचार्य हैं। राजा बली का घमंड चूर करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन भगवान का रूप धारण किया और उससे भिक्षा मांगने पहुंच गए। राजा बली ने वामन भगवान को देखते ही कहा ब्रह्मचारी जी आपका स्वागत है आइए-आइए। आगे कहा कि आपका कौन सा कार्य मैं करूं। आपको देखने से ही पता चलता है कि ब्रह्मऋषियों ने जो तपस्या उससे निकले तेजपुण्य से ही आपने यह रूप धारण किया। बली के मुख से ऐसे वाक्य सुनकर वामन भगवान असमंजस में पड़ गए, वह विचार करने लगे कि यह तो ब्रह्मऋषियों से उत्पन्न तेजपुण्य बता रहा है और मैं तो तीनों लोक इससे मांगने आया हूं। इसके बाद बली ने वामन भगवान का स्वागत करके उन्हें अपने आसन पर बैठाया और खुद नीचे खड़ा हो गया। बलि की पत्नी का नाम विन्यावलि है। जो अपने पति को पतन से बचाने का प्रयास करती है वही तो असली पत्नी है। विन्यावलि ने सोने के कलश में जल लाकर रख दिया और पति से कहा कि महाराज चारण पछारण कीजिए। बलि भगवान के चरण धो रहा है, वह बेहद भाग्यशाली है। चरण धोते हुए बली कहता है कि आज मेरे पितर तृप्त हो गए, आज मेरा कुल पवित्र हो गया और मेरा यक्ष भी सफल हो गया।
आप मेरे घर में आए हो मेरे जीवन का कल्याण ही कल्याण हो गया। स्वयं भगवान सिर को नीचे झुकाए बैठे हैं क्योंकि याचना करने वाले की आंख नीचे होती है। याचना की पूर्ति करने वाली की आंख ऊपर होती है। भगवान मांगना चाहते हैं और मांग नहीं पा रहे हैं। बली ने भगवान को ऊपर से नीचे की ओर देखा और विचार किया कि ये कुछ मांगने आए हैं और मांग नहीं पा रहे हैं। बलि ने कहा कि हे ब्रह्माण लगता है आप कुछ मांगने आए हो और मांग नहीं पा रहे हो। भगवान ने कहा कि क्या दे सकते हो, जिसपर बलि कहता है कि मैं सबकुछ दे सकता हूं अगर आप विवाह करना चाहे तो मैं एक बेटी भी ला सकता हूं। भगवान ने कहा बली से कहा कि तुम्हारे कुल की परंपरा रही, हिरण्यकश्यपु ने जो कहा वही किया, प्रहलाद ने जो कहा महान कष्ट सहते हुए वही किया। वे आपके बाबा और परबाबा थे। जिसपर बली पुन: बोला महाराज जो मंगाना है मांग लीजिए। दरअसल जिससे कुछ मांगना होता है तो प्रशंसा भी करनी चाहिए, भगवान ने यही किया और बली मान गया। भगवान ने आगे कहा हे राजन मुझे सिर्फ तीन पग भूमि चाहिए और वह भूमि जो होगी वह किसी के द्वारा नापी नहीं जा सकती नापने के लिए मेरे ही तीन पग होंगे। बली ने भगवान को ऊपर से नीचे तक देखा और कहा मांगना है तो ज्यादा मांग लो तीन पग में क्या होगा। जिसपर भगवान ने कहा कि ब्रह्मचारी को ज्यादा संग्रह नहीं करना चाहिए, मुझे तो उतनी ही भूमि चाहिए जिसमें सिर्फ यक्षशाला बन जाए। उधर शुक्रराचार्य सब समझ गए और उन्होंने सोचा कि तीन पग में तो ये सब नाप लेंगे तो फिर मैं कहां रहूंगा। शुक्रराचार्य ने बली को समझाने का बहुत प्रयास किया यह बताया कि ये वामन रूप में स्वयं भगवान विष्णु हैं, लेकिन राजा बलि ने अपने गुरू की एक बात भी नहीं सुनी और तीन पग जमीन का संकल्प ले लिया। जिसके बाद वामन भगवान ने तीनों लोक नाप लिए। तीसरे पग के लिए जब राजा बलि के पास देने को कुछ नहीं बचा तो उसने स्वयं को आगे कर दिया। कथा 18 नवंबर से चल रही है जिसका समापन और भंडारा 24 नवंबर को होगा।