छापेमारी में बेनामी संपत्ति और काले धन का जाल आया सामने
भोपाल,संवाददाता : जंगल में लावारिस खड़ी एक कार में छिपा 52 किलो सोने का खजाना और 11 करोड़ रुपये की नकदी, यह कहानी किसी सस्पेंस फिल्म की तरह लग सकती है, लेकिन यह हमारे भ्रष्ट तंत्र की वास्तविकता को उजागर करती है। क्या इस घटना से हम हैरान होते हैं? शायद नहीं, क्योंकि यह भ्रष्टाचार से भरी हमारी व्यवस्था का एक हिस्सा है। यह मामला केवल चोरी और हेराफेरी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन ताकतवर नेताओं, नौकरशाहों और कारोबारियों के गठजोड़ का प्रमाण है जो इस तरह की काली कमाई के पीछे हैं। इस कार में हूटर, आरटीओ और पुलिस के स्लाइड्स लगे हुए थे, जो यह दर्शाते हैं कि यह काली कमाई सांठगांठ से अर्जित की गई थी। यह कार एक भ्रष्ट व्यवस्था का प्रतीक बन चुकी है, जो कायदे-कानून को पूरी तरह से नजरअंदाज कर देती है। वहीं, एक आरटीओ के पूर्व सिपाही के घर से भी अकूत दौलत का पता चला है। यह ऐसा महसूस होता है जैसे किसी कलाकार ने भ्रष्ट तंत्र की मूर्ति बनाई हो, जहां हर व्यक्ति इस गंदे खेल में लिप्त है। छापेमारी में बेनामी संपत्ति और काले धन का जाल सामने आया है, लेकिन इस सोने और नकदी का कोई वारिस सामने नहीं आया।
यह मानसिकता दर्शाती है कि भ्रष्टाचारी सोचते हैं, “अगर काला धन चला भी गया, तो क्या हुआ? हम फिर से कमा लेंगे।” यही सोच हमारी व्यवस्था में व्याप्त गहरी सड़ांध को दर्शाती है। न केवल यह काली कमाई जनता के हक पर डाका डालती है, बल्कि यह प्रदेश की आर्थिक सेहत को भी खोखला कर रही है। अब सवाल यह है कि क्या आयकर विभाग और लोकायुक्त जैसी एजेंसियां इस मामले की तह तक पहुंच पाएंगी? या फिर वही होगा जो हमेशा होता है—कुछ ‘मोहरों’ को बलि का बकरा बनाकर पूरी ‘गठजोड़’ को बचा लिया जाएगा?