बसपा प्रमुख मायावती ने परोक्ष रूप से अखिलेश यादव की आलोचना की
लखनऊ,संवाददाता : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के तीव्र विरोध के बाद समाजवादी पार्टी (सपा) ने गुरुवार को अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं से अपील की है कि वे पार्टी नेताओं की किसी भी प्रकार से तुलना महापुरुषों से न करें। यह बयान लखनऊ स्थित सपा कार्यालय के बाहर लगाए गए एक विवादित पोस्टर के बाद सामने आया है जिसमें सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर के चेहरे को मिलाकर एक चेहरा दर्शाया गया था।
पोस्टर को लेकर प्रदेश भर में भाजपा कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया, जिसके बाद सपा ने ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक बयान जारी करते हुए कहा, हम अपने सभी समर्थकों और पार्टी कार्यकर्ताओं के प्रेम, स्नेह, समर्पण के लिए उनकी भावनाओं का हृदय से आभार प्रकट करते हैं, साथ ही यह अपील भी करते हैं कि भावना में बहकर कभी भी किसी पार्टी नेता की तुलना किसी भी महापुरुष से किसी भी संदर्भ में न करें और न ही इस तुलना को दर्शानेवाली कोई भी तस्वीर, प्रतिमा, गीत बनाएं या बयान दें।” सपा ने स्पष्ट किया कि दिव्य व्यक्तित्व और महापुरुष किसी भी तुलना से ऊपर होते हैं। विवाद के केंद्र में रहा पोस्टर लखनऊ में सपा कार्यालय के बाहर लगाया गया था, जिसे लेकर भाजपा और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) दोनों ने सपा पर निशाना साधा। बसपा प्रमुख मायावती ने परोक्ष रूप से अखिलेश यादव की आलोचना की, जबकि भाजपा ने प्रदेशभर में धरने और विरोध प्रदर्शन किए।
सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने बयान में कहा, यह समाजवादी पार्टी का आधिकारिक पोस्टर नहीं है। हमें नहीं पता कि इसे किसने लगाया है। कोई भी, कहीं भी पोस्टर लगा सकता है। हो सकता है यह भाजपा का किया हुआ हो। अखिलेश यादव ने भी मीडिया से बात करते हुए कहा कि लोहिया वाहिनी के नेता लाल चंद्र गौतम को भविष्य में इस तरह के पोस्टर न लगाने की सलाह दी जाएगी। उन्होंने भाजपा पर पलटवार करते हुए पूछा कि क्या भाजपा अपने उस नेता से सवाल करेगी जिसने संसद में डॉ. आंबेडकर पर विवादित टिप्पणी की थी।
ज्ञात हो कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा था आंबेडकर का नाम लेना फैशन बन गया है। अगर वे (विपक्ष) इतनी बार भगवान का नाम लेते तो उन्हें स्वर्ग में जगह मिल जाती। 2024 के लोकसभा चुनावों में प्रभावशाली प्रदर्शन के बाद सपा अब 2027 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए ‘पीडीए’ (पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक) वर्ग को साधने की रणनीति पर काम कर रही है। दलितों को आकर्षित करने की इस कोशिश में पार्टी की यह सावधानीपूर्ण अपील, भाजपा और बसपा के राजनीतिक दबाव के बीच संतुलन बनाने का प्रयास मानी जा रही है।