सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे के विकास पर हो सकता है प्रतिकूल असर
नई दिल्ली,संवाददाता : भारतीय रिजर्व बैंक ने राज्यों को अपनी आर्थिक नीतियों पर सतर्क रहने के लिए एक अहम रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में कृषि ऋण माफी, मुफ्त बिजली, और परिवहन जैसी सुविधाओं पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। रिजर्व बैंक का कहना है कि ऐसी योजनाओं से राज्यों के संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ सकता है, जिसके कारण उनके सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे के विकास पर प्रतिकूल असर हो सकता है। रिपोर्ट का शीर्षक “राज्य वित्त 2024-25 के बजट का अध्ययन” है, जिसमें यह बताया गया है कि पिछले तीन वर्षों (2021-22 से 2023-24) में राज्यों ने अपने राजकोषीय घाटे को जीडीपी के तीन प्रतिशत के भीतर सीमित रखने में सफलता प्राप्त की है। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि कई राज्यों ने बजट में ऐसे प्रावधान किए हैं जिनसे उनके वित्तीय संसाधनों पर भारी बोझ पड़ेगा। इनमें कृषि ऋण माफी, मुफ्त बिजली, परिवहन, बेरोजगार युवाओं को भत्ता और महिलाओं को नकद सहायता जैसी योजनाएं शामिल हैं।
सब्सिडी पर खर्च की चिंता:
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सब्सिडी पर खर्च में तेज वृद्धि एक बड़ी चिंता का विषय है। कृषि ऋण माफी, मुफ्त सेवाएं (जैसे बिजली, परिवहन) और नकद हस्तांतरण जैसी योजनाओं के कारण सब्सिडी खर्च में भारी वृद्धि हो रही है। रिजर्व बैंक का कहना है कि यदि इस प्रकार की नीतियां जारी रहती हैं, तो राज्यों के पास बुनियादी विकास योजनाओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं होंगे।
RBI के सुझाव:
- सब्सिडी पर खर्च को नियंत्रित करना: राज्यों को अपने सब्सिडी खर्च को तर्कसंगत बनाना चाहिए।
- विकास पर ध्यान: राज्यों को पूंजीगत खर्च बढ़ाने और व्यय की गुणवत्ता सुधारने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- दीर्घकालिक नीतियों की आवश्यकता: उच्च ऋण-जीडीपी अनुपात और बढ़ते सब्सिडी बोझ को ध्यान में रखते हुए, राज्यों को दीर्घकालिक राजकोषीय नीतियां अपनानी चाहिए जो उनकी वित्तीय मजबूती को सुनिश्चित कर सकें।
राज्यों की बकाया देनदारियां:
रिजर्व बैंक ने यह भी बताया कि राज्यों की कुल बकाया देनदारियां मार्च 2024 के अंत तक जीडीपी के 28.5 प्रतिशत पर आ गई हैं, जो मार्च 2021 में 31प्रतिशत थीं, लेकिन यह आंकड़ा अभी भी महामारी-पूर्व स्तर से अधिक है।
आवश्यक नीतियों की आवश्यकता:
रिजर्व बैंक ने राज्यों से अपील की है कि वे मुफ्त योजनाओं से हटकर जरूरी नीतियों को अपनाएं और राजस्व बढ़ाने के नए स्रोतों की पहचान करें। इसके अलावा, राज्यों को अपने खर्च की गुणवत्ता में सुधार करने की भी आवश्यकता है।