ज्योतिष आचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्र
लखनऊ,संवाददाता : षटतिला एकादशी, माघ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन व्रत करने से कष्टों, दरिद्रता और दुर्भाग्य से मुक्ति मिलती है तथा स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा और तिलों के प्रयोग से इस दिन बहुत लाभ मिलता है।
षटतिला एकादशी में तिलों का विशेष महत्व है:
इस दिन तिलों का प्रयोग छह प्रकार से करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। ये हैं:
- तिल के तेल से मालिश
- तिल मिश्रित जल से स्नान
- तिलो से हवन
- तिलो वाले पानी का सेवन
- तिलो का दान
- तिल से बनी चीजों का सेवन तथा दान (जैसे रेवड़ी, गज्जक आदि)
- तिल के साथ तर्पण
व्रत विधि:
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा विशेष रूप से की जाती है। तिल के तेल से स्नान, तिल का दान, हवन आदि कार्य विधिपूर्वक करने चाहिए। इस दिन विशेष मंत्रोच्चारण और भजन-कीर्तन भी करना चाहिए। व्रत का पारणा 26 जनवरी को प्रातः 9:00 बजे तक करना चाहिए। द्वादशी तिथि के भीतर पारणा करना अनिवार्य है, क्योंकि इसके बाद व्रत का फल समाप्त हो जाता है। व्रति को इस दिन अनाज, चावल और दालें नहीं खाना चाहिए। अन्यथा, कोई राजसिक या तामसिक कार्य भी व्रत के दौरान नहीं करना चाहिए। षटतिला एकादशी के दिन काली गाय का दान करना अत्यंत शुभ फलदायी है। इसके साथ ही तिल, अन्न, वस्त्र का दान भी लाभकारी होता है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक निर्धन ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु की भक्ति की थी, लेकिन उसके पास दान करने के लिए कुछ नहीं था। उसने भगवान को मिट्टी का एक पिंड दिया और भगवान ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे स्वर्ग लोक भेजा। इसलिए इस दिन तिलों से स्नान और दान करने से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।