ज्योतिष एवं वास्तु विशेषज्ञ डॉ उमाशंकर मिश्रा
दिनांक – 20 सितम्बर 2024
दिन – शुक्रवार
संवत्सर –काल युक्त
शक संवत –1946
विक्रम संवत् – 2081
कलि युगाब्द –5126
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद
मास – आश्विन
पक्ष – कृष्ण
तिथि – तृतीया रात्रि 01:26 तक तत्पश्चात चतुर्थी
नक्षत्र – रेवती अर्थात मूल नक्षत्र सुबह 9:26 तकअश्विनी अर्थात मूल नक्षत्र 21 सितंबर दिन शनिवार अर्थात कल सुबह 7:50 तक तत्पश्चात भरणी
योग – ध्रुव रात्रि 08:37 तक तत्पश्चात व्याघात
राहु काल – प्रातः 10:30 से दोपहर 12:00 तक
सूर्योदय – 05:57
सूर्यास्त – 06:03
दिशा शूल – पश्चिम दिशा में
अग्निवास – 18+06+01=25÷4=01 स्वर्ग लोक में।
शिववास – 18+18+5=41÷7 =06 क्रीड़ायाम वासे।
व्रत पर्व विवरण – तृतीया श्राद्ध, सर्वार्थ सिद्धि योग
विशेष – तृतीया
श्राद्ध के दिन
जिस दिन आप के घर में श्राद्ध हो उस दिन पितरों के नाम से तर्पण करें त्रिपिंडी करें पिंडदान करें ब्राह्मणों को भोजन करावे गीता का सातवें अध्याय का पाठ करें । पाठ करते समय जल भर के रखें । पाठ पूरा हो तो जल सूर्य भगवन को अर्घ्य दें और कहें की हमारे पितृ के लिए हम अर्पण करते हें। जिनका श्राद्ध है , उनके लिए आज का गीता पाठ अर्पण।
श्राद्ध कर्म
अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें :
“हे सूर्य नारायण ! मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दे) को आप संतुष्ट/सुखी रखें । इस निमित मैं आपको अर्घ्य व भोजन कराता हूँ ।” ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगायें ।
तुलसी
श्राद्ध और यज्ञ आदि कार्यों में तुलसी का एक पत्ता भी महान पुण्य देनेवाला है | पद्मपुराण
श्राद्ध के लिए विशेष मंत्र
” ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा । “
इस मंत्र का जप करके हाथ उठाकर सूर्य नारायण को पितृ की तृप्ति एवं सदगति के लिए प्रार्थना करें । स्वधा ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं । इस मंत्र के जप से पितृ की तृप्ति अवश्य होती है और श्राद्ध में जो त्रुटी रह गई हो वे भी पूर्ण हो जाती हैं।
श्राद्ध में करने योग्य
श्राद्ध पक्ष में १ माला रोज द्वादश मंत्र ” ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ” की करनी चाहिए और उस माला का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिए।
दीप – प्रज्वलन अनिवार्य क्यों ?
धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ, सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में दीपक प्रज्वलित करने की परम्परा है । दीपक हमें अज्ञानरुपी अंधकार को दूर करके पूर्ण ज्ञान को प्राप्त करने का संदेश देता है आरती करते समय दीपक जलाने के पीछे उद्देश्य यही होता है कि प्रभु हमें अज्ञान-अंधकार से आत्मिक ज्ञान-प्रकाश की ओर ले चलें ।
मनुष्य पुरुषार्थ कर संसार से अंधकार दूर करके ज्ञान का प्रकाश फैलाये ऐसा संदेश दीपक हमें देता है । दीपावली पर्व में, अमावस्या की अँधेरी रात में दीप जलाने के पीछे भी यही उद्देश्य छुपा हुआ है । घर में तुलसी की क्यारी के पास भी दीप जलाये जाते हैं । किसी भी नये कार्य की शुरुआत भी दीप जलाकर की जाती है । अच्छे संस्कारी पुत्र को भी कुल-दीपक कहा जाता है ।
अमृतफल आँवला
आँवला धातुवर्धक श्रेष्ठ रसायन द्रव्य है । इसके नित्य सेवन से शरीर में तेज, ओज, शक्ति, स्फूर्ति तथा वीर्य की वृद्धि होती है । यह टूटी हुई अस्थियों को जोड़ने में सहायक है तथा दाँतों को मजबूती प्रदान करता है । इसके सेवन से आयु, स्मृति व बल बढ़ता है । ह्रदय एवं मस्तिष्क को शक्ति मिलती है । बालों की जड़ें मजबूत होकर बाल काले होते हैं ।
ताजे आँवले के रस में नारंगी के रस की अपेक्षा २० गुना अधिक विटामिन ‘सी’ होता है । हृदय की तीव्र गति अथवा दुर्बलता, रक्त-संचार में रुकावट आदि विकारों में आँवले के सेवन से लाभ होता है । आँवले के सेवन से त्वचा का रंग निखर आता है व कांति बढ़ती है
वर्षभर किसी-न-किसी रूप में आँवले का सेवन अवस्य करना चाहिए । यह वर्षभर निरोगता व स्वास्थ्य प्रदान करनेवाली दिव्य औषधि है I
पंचक
16 सितम्बर 2024 सोमवार को सुबह 04:16 बजे से 20 सितम्बर 2024 दिन शुक्रवार को दोपहर 2:37 तक।