चतुर्थी पर पूजा करने से सभी संकट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का वास
डॉ उमाशंकर मिश्रा,लखनऊ : माघ महीने की शुरुआत हो चुकी है और इस माह का शुक्ल पक्ष शुरू हो चुका है। इस विशेष महीने में कई त्योहार आते हैं, जिनमें से एक है वरद तिल चतुर्थी। माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को तिल कुंद चतुर्थी या वरद तिल चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा तिल और कुंद के फूलों से की जाती है, क्योंकि तिल और कुंद के फूल श्री गणेश को अतिप्रिय होते हैं। वरद तिल चतुर्थी आज, 2 फरवरी 2025, रविवार को मनाई जाएगी। इस दिन गणेश जी को भोग के रूप में लड्डू भी अर्पित किए जाते हैं।
वरद तिल चतुर्थी तिथि
आरंभ: 01 फरवरी 2025, दोपहर 2:00 बजे से
समाप्ति: 02 फरवरी 2025, दोपहर से पहले 11:53 तक
वरद तिल चतुर्थी का पूजा मुहूर्त
आज, 2 फरवरी 2025, वरद तिल चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा।
वरद तिल चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा का महत्व
माघ तिल कुंद चतुर्थी पर भगवान गणेश और चंद्र देव की पूजा से मन को शांति और सुख मिलता है। इस दिन व्रत रखने से गणेश जी अपने भक्तों के सभी कष्ट दूर करते हैं और धन, विद्या, बुद्धि तथा ऐश्वर्य का आशीर्वाद देते हैं। रिद्धि-सिद्धि की भी प्राप्ति होती है और जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं।
गणेश जी की पूजा से होती है हर मनोकामना पूरी
आज की वरद तिल कुंड चतुर्थी का विशेष महत्व है। इस दिन की पूजा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
विशेष योग
माघ मास के शुक्ल पक्ष की गुप्त नवरात्रि भी चल रही है। गुप्त नवरात्रि और वरद तिल कुंड चतुर्थी का योग एक अद्भुत संयोग उत्पन्न कर रहा है। इस समय गुप्त साधक श्री गणेश के मंत्रों के साथ-साथ माता शक्ति के मंत्रों से अनुष्ठान करते हैं।
वरद तिल चतुर्थी की पूजा विधि
विधि:
- वरद तिल चतुर्थी की पूजा ब्रह्म मुहूर्त और गोधूलि मुहूर्त में की जाती है।
- पूजा से पहले स्नान करके साफ-स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- इसके बाद आसन पर बैठकर भगवान श्री गणेश का पूजन करें।
- पूजा के दौरान भगवान श्री गणेश को धूप-दीप दिखाएं।
- श्री गणेश को फल, फूल, चावल, रौली, मौली अर्पित करें।
- पंचामृत से स्नान कराने के बाद तिल या तिल-गुड़ से बनी वस्तुओं व लड्डुओं का भोग लगाएं।
- पूजा के बाद ‘ॐ श्री गणेशाय नम:’ का जाप 108 बार करें।
- शाम के समय कथा सुनें और भगवान गणेश की आरती करें।
- शास्त्रों के अनुसार इस दिन गर्म कपड़े, कंबल, कपड़े और तिल आदि का दान करें।