ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा
लखनऊ,संवाददाता : जितने भी प्रकार की सिद्धियां हैं, वे शिवलिंग की स्थापना करने से तत्काल सिद्ध हो जाती हैं। सारा संसार लिंग का ही रूप है, इसलिए इसकी प्रतिष्ठा से सबकी प्रतिष्ठा हो जाती है। ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र कोई भी अपने पद पर स्थिर नहीं रह सकते।
लिंग की शुद्धता
लिंग तीन गुणों को उत्पन्न करने का कारण है। वह आदि और अंत दोनों से रहित है। इस संसार का मूल प्रकृति है और इसी से चर-अचर जगत की उत्पत्ति हुई है। यह शुद्ध, अशुद्ध और शुद्धाशुद्ध आदि से तीन प्रकार का है। सभी देवता और प्राणीजन इसी से उत्पन्न होकर अंत में इसी में लीन हो जाते हैं। इसलिए भगवान शिव को लिंग रूपी मानकर उनका देवी पार्वती सहित पूजन किया जाता है। भगवान शिव और देवी पार्वती की आज्ञा के बिना इस संसार में कुछ भी नहीं हो सकता। त्रिलोकी के प्रलयकाल आने पर जब भयानक प्रलय मची थी, उस समय श्रीहरि भगवान विष्णु क्षीरसागर में अथाह जल के बीच शेष शय्या में सो गए। तब उनके नाभि कमल से ब्रह्माजी की उत्पत्ति हुई। शिवजी की माया से मोहित ब्रह्माजी विष्णुजी के पास जाकर उनसे बोले- तुम कौन हो? यह कहकर उन्होंने निद्रामग्न श्रीहरि को झिंझोड़ दिया।
भगवान शिव का लिंग रूप में प्रकट होना
तब जागकर श्रीहरि ने आश्चर्य से अपने सम्मुख खड़े व्यक्ति को देखकर पूछा-पुत्र तुम कौन हो और यहां क्यों आए हो? यह सुनकर ब्रह्माजी को क्रोध आ गया। तब वे दोनों ही अपने को बड़ा और सृष्टि का रचयिता मानकर आपस में झगड़ने लगे। जल्दी ही बढ़ते-बढ़ते बात युद्ध तक पहुंच गई और ब्रह्मा-विष्णु में भयंकर युद्ध होने लगा। तब त्रिलोकीनाथ भगवान शिव उस युद्ध को रोकने के लिए दिव्य अग्नि के समान प्रज्वलित लिंग रूप में उनके बीच में प्रकट हो गए। उन्हें देखकर दोनों आश्चर्यचकित हो गए और उनका अभिमान जाता रहा।
लिंग के आदि और अंत की खोज
तब वे उस लिंग के आरंभ और अंत की खोज के लिए निकल पड़े। ब्रह्मा ने हंस का रूप धारण किया और तीव्र गति से ऊपर चले गए। श्रीहरि ने वराह रूप धारण किया और नीचे की ओर गए। एक हजार वर्षों तक दोनों लिंग के आदि अंत की तलाश में घूमते रहे, परंतु उन्हें कुछ न मिला। उन्होंने यही समझा कि यह कोई प्रकाशमान आत्मा है। तब ब्रह्माजी और विष्णुजी दोनों ने हाथ जोड़कर श्रद्धाभाव से प्रकाश पुंज शिवलिंग को प्रणाम किया।