गया में श्राद्ध करने के बाद पितरों का श्रद्धा ना करने वालों के भ्रम का संपूर्ण निवारण
डॉ उमाशंकर मिश्र /लखनऊ :- जब तक माता पिता जीवित रहें तब तक माता पिता की आज्ञापालन करे I माता पिता की मृत्युके बाद शास्त्रोचित और्ध्व दैहिक कर्म करे I और फिर गया में पिंडदान करे वही वास्तव में पुत्रपद वाच्य है। गयाश्राद्ध करने के बाद भी महालय (आश्विन कृष्ण पक्षमें/पितृपक्ष में होने वाला) श्राद्ध सांवत्सरिकैकोद्दिष्ट श्राद्ध (माता पिताकी मृत्युतिथि उसी मासमें होने वाला श्राद्ध) आदि को अवश्य करना चाहिए।
वतो वाक्यकरणात् क्षयाहे भूरिभोजनात्।
गयायां पिण्डदानाच्च त्रिभि: पुत्रस्य पुत्रता।।
गया श्राद्धनित्यश्राद्धत्वात् प्रतिवर्ष करणीय है अर्थात् गया श्राद्ध तो प्रतिवर्ष करना चाहिए। जब गया श्राद्ध ही प्रतिवर्ष करणीय है तो और श्राद्ध तो कैमुतन्यायेन स्वत:ही सिद्ध हो गये। गया श्राद्ध करनेके बाद अन्य श्राद्ध को न करने से बड़ा भारी प्रत्यवाय यानी दोष लगता है। गया के लोभी पंडों या अनजान पंडितों के कहने पर श्राद्ध बंद नहीं करना चाहिए।क्या करना है, क्या नहीं करना है इसमें कोई पंडे या कोई पंडित या बाबाजी अथवा किसीका मन या भावना प्रमाणित नहीं होती।
इन श्राद्धादि समस्त धर्मकृत्यों में तो केवल शास्त्र ही प्रमाणित हैं :-
तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ। य: शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारत:। न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।।
धर्म व ब्रह्मके विषयमें किसी भी प्रकारकी विचिकित्सा होने पर केवल वेद ही प्रमाणित होते हैं। क्योंकि धर्म व ब्रह्म केवल वेदैक समधिगम्य हैं इसीलिए ही वेदों की वेदता है I
प्रत्यक्षेणानुमित्या वा यस्तूपायो न बुद्ध्यते।एनं विदन्ति वेदेन तस्माद् वेदस्य वेदता।।
गया श्राद्ध करने के बाद कोई भी श्राद्ध करनेकी जरूरत नहीं है” ऐसा कहना बिल्कुल गलत है/ शास्त्र विरुद्ध है क्योंकि इसमें कोई भी शास्त्र वचन प्रमाणित नहीं है। हां यह जरूर है कि यदि कोई सज्जन गया में श्राद्ध करके, नैमिषारण्यमें/चक्रतीर्थमें श्राद्ध करे, बाद में बद्रीनाथमें ब्रह्मकपालीमें श्राद्ध करे तो उसके बाद भी अपने पिता का केवल वही पुत्र जिसने श्राद्ध किया हुआ है, वह अपने जीवनकाल में “पिण्डदानात्मकश्राद्ध” न करे परंतु ब्राह्मणभोजनात्मक श्राद्ध तो वह भी करे। आजकल तो सपात्रकश्राद्ध, पिण्डदानात्मकश्राद्ध तो लुप्त प्रायः ही हो गये हैं।सारांश— मुख्यबात यही है कि केवल गया श्राद्ध करने के बाद भी अन्यश्राद्ध, तर्पणादि कर्म अवश्य ही करने चाहिए, जो लोग नहीं करते हैं वे शास्त्रविरुद्धाचरण करने वाले हैं।