आज ही के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था पावन गीता का उपदेश
लखनऊ,संवाददाता : भगवद्गीता मनुष्य को उसके कर्तव्यों को पहचानने, मानवीय और देवीय गुणों का विकास करने का मार्ग दिखाती है। यह जीवन में आने वाली कठिनाइयों और समस्याओं का समाधान देती है।भगवद्गीता सभी प्रकार के व्यक्तियों – चाहे वे वैज्ञानिक हों, राजनीतिज्ञ, शिक्षक, विद्यार्थी या संन्यासी – सभी के लिए लाभकारी है। यह जीवन को बेहतर समझने और बेहतर बनाने में मदद करती है।यह माना जाता है कि यदि घर में भगवद्गीता है, तो घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। गीता जीवन की सार्थकता को सिद्ध करती है और हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए सहायक सिद्ध होती है। श्रीमद्भागवद्गीता स्वयं सिद्ध ग्रंथ है, क्योंकि यह भगवान के श्रीमुख से निकला हुआ एकमात्र ग्रंथ है। इसके प्रत्येक श्लोक को शाश्वत सिद्ध मंत्र माना गया है। भगवद्गीता किसी जाति या संप्रदाय का ग्रंथ नहीं है। यह संपूर्ण मानवता के लिए है और प्रत्येक कालखंड के मनुष्य के लिए नूतन व शाश्वत उपदेश देती है।
भगवद्गीता के अध्यायों का विवरण:
- पहला अध्याय – कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्य निरीक्षण
- दूसरा अध्याय – गीता का सार
- तीसरा अध्याय – कर्मयोग
- चौथा अध्याय – दिव्य ज्ञान
- पाँचवां अध्याय – कर्मयोग कृष्णाभावनाभावित कर्म
- छठा अध्याय – ध्यानयोग
- सातवां अध्याय – भगवद्ज्ञान
- आठवां अध्याय – भगवत्प्राप्ति
- नौवां अध्याय – परम गुह्य ज्ञान
- दशवां अध्याय – श्रीभगवान का ऐश्वर्य
- ग्यारवां अध्याय – विराट रूप
- बारहवां अध्याय – भक्तियोग
- तेरहवां अध्याय – प्रकृति, पुरुष तथा चेतना
- चौदहवां अध्याय – प्रकृति के तीन गुण
- पन्द्रहवां अध्याय – परुषोत्तम योग
- सोलहवां अध्याय – देवी तथा आसुरी स्वभाव
- सत्रहवां अध्याय – श्रद्धा के विभाग
- अठारहवां अध्याय – संन्यास की सिद्धि
गीता जयंती 2024 – एक महत्वपूर्ण अवसर
- 11 दिसंबर 2024, बुधवार को गीता जयंती: इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। यह अवसर विशेष रूप से गीता के प्रचार-प्रसार और इसके महत्व को समझने का है।
- निवेदन: इस गीता जयंती पर आप सभी से अनुरोध है कि अधिक से अधिक लोगों को भगवद्गीता का प्रचार करें और अपने मित्रों और परिजनों को श्रीमद्भागवत गीता की पुस्तक भेंट करें।
भगवान श्री कृष्ण के उपदेश:
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।”