मुद्रा समस्या भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बन सकती है एक गंभीर खतरा
दिल्ली,संवाददाता : भारतीय रुपये की गिरती कीमतों ने एक बार फिर देश की अर्थव्यवस्था को दबाव में डाल दिया है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, रुपये में गिरावट का सीधा असर देश के आयात बिल पर पड़ा है, जिससे महंगाई की दर में वृद्धि होने की संभावना जताई गई है। GTRI की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय रुपया पिछले वर्ष 16 जनवरी से अब तक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 4.71% कमजोर हो चुका है। रुपया 82.8 रुपये प्रति डॉलर से गिरकर 86.7 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच चुका है। बीते 10 वर्षों में रुपये की कीमत में कुल 41.3% की गिरावट आई है, जबकि चीनी युआन में केवल 3.24% की गिरावट दर्ज की गई है। इस गिरावट का सबसे अधिक प्रभाव कच्चे तेल, कोयला, वनस्पति तेल, सोना, हीरे, इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, प्लास्टिक और रसायनों के आयात पर पड़ा है। कमजोर रुपये के चलते आयात पर अधिक खर्च हो रहा है, जिससे महंगाई में वृद्धि होने की संभावना है।
सोने के आयात बिल में वृद्धि
GTRI ने चेतावनी दी है कि रुपये की गिरावट भारत के सोने के आयात बिल को काफी बढ़ा सकती है। जनवरी 2025 तक वैश्विक बाजार में सोने की कीमतें 31.25% बढ़कर 86,464 डॉलर प्रति किलोग्राम हो चुकी हैं, जबकि जनवरी 2024 में यह कीमत 65,877 डॉलर प्रति किलोग्राम थी। रुपये की कमजोरी के कारण भारत को सोने के आयात के लिए अधिक भुगतान करना पड़ेगा, जो महंगाई को और बढ़ा सकता है। GTRI के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, “कमजोर रुपया आयात बिल को बढ़ाएगा, जिससे ऊर्जा और कच्चे माल की कीमतें बढ़ेंगी। इससे अर्थव्यवस्था पर दबाव और महंगाई में इजाफा होगा।” श्रीवास्तव के अनुसार, कमजोर मुद्रा का निर्यात पर सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है, बल्कि यह निर्यात को वैश्विक प्रतिस्पर्धा से पीछे छोड़ सकता है। GTRI ने अपनी रिपोर्ट में भारत को दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता के लिए आयात-निर्यात संतुलन पर ध्यान देने का सुझाव दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत को आयात पर निर्भरता कम करनी होगी और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना होगा। श्रीवास्तव ने यह भी कहा कि भारत का 600 अरब डॉलर से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार मुख्य रूप से ऋण और निवेश से बना है, जिसका ब्याज सहित भुगतान करना है, जिससे रुपये को स्थिर रखने की कोशिशें सीमित हो जाती हैं।