जैविक खेती से संवर रहा बंदियों का भविष्य
बाराबंकी,संवाददाता : जिला कारागार, जो अब तक अपराधियों के लिए जाना जाता था, वहां अब एक नई सुबह की शुरुआत हो रही है। जेल अधीक्षक कुंदन कुमार के निर्देशन और “निमदस” संस्था के सहयोग से कैदियों द्वारा जैविक खेती की अनोखी पहल शुरू की गई है। कैदियों को आत्मनिर्भर बनाने की इस मुहिम में वर्मी कम्पोस्ट से सब्जियों का उत्पादन किया जा रहा है। यह पहल न केवल उन्हें रोजगार दे रही है, बल्कि एक सकारात्मक जीवन की ओर भी प्रेरित कर रही है।
गोशाला से जैविक खेत तक – जेल परिसर में बदला माहौल

जेलर जेपी तिवारी ने जानकारी दी कि जिला कारागार में लगभग 10 एकड़ खेती योग्य भूमि है, जहाँ गौशाला से प्राप्त गोबर का उपयोग वर्मी कम्पोस्ट बनाने में किया जा रहा है। यह पूरी तरह जैविक प्रक्रिया से तैयार खाद खेतों में उपयोग की जा रही है। इससे लौकी, तरोई, भिंडी, बैंगन, करेला, टमाटर सहित अनेक हरी सब्जियों का उत्पादन हो रहा है। यह पहल बंदियों को न केवल पौष्टिक आहार प्रदान कर रही है, बल्कि उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बना रही है।
“नया जीवन, नई राह” – जैविक खेती से सामाजिक पुनर्वास की ओर
“निमदस” संस्था के प्रबंध निदेशक एसके वर्मा ने बताया कि जैविक खेती के माध्यम से कैदियों को एक नया जीवन दर्शन दिया जा रहा है। उन्हें न केवल खेती के आधुनिक और प्राकृतिक तरीके सिखाए जा रहे हैं, बल्कि उनके भीतर आत्मबल और आत्मनिर्भरता की भावना भी विकसित की जा रही है। रिहा होने के बाद वे न केवल एक स्वच्छ जीवन जीने को प्रेरित होंगे, बल्कि समाज में भी जैविक खेती के प्रचार-प्रसार में योगदान देंगे।
अनूठी पहल
बाराबंकी कारागार की यह अनूठी पहल इस बात का प्रतीक है कि यदि अवसर और मार्गदर्शन मिले, तो अपराध की राह पर गया इंसान भी समाज के लिए प्रेरणा बन सकता है। जैविक खेती ने जेल की दीवारों के भीतर एक नई हरियाली पैदा की है – उम्मीद की, बदलाव की और आत्मनिर्भरता की।