ज्योतिष एवं वास्तु विशेषज्ञ डॉ उमाशंकर मिश्र
लखनऊ : इस साल पितृपक्ष 17 सितंबर से 2 अक्टूबर तक रहेगा. पितृपक्ष के दौरान शुभ व मांगलिक कार्य जैसे कि शादी-विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, मुंडन या नई चीजों की खरीदारी भी वर्जित होती है. इसमें केवल पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है. ,पितृपक्ष में तिथि अनुसार ही पितरों का श्राद्ध किया जाता
पितृपक्ष 17 सितंबर से शुरू होने वाला है
पितृपक्ष में लोग पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और अन्य धार्मिक अनुष्ठान करते हैं. लोग अपने पूर्वजों की तृप्ति के लिए भोजन और जल अर्पित करते हैं. ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं. उन्हें दान-दक्षिणा देकर पितरों की आत्मा की शांति की प्रार्थना करते हैं. यह भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से लेकर अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक रहता है. इस साल पितृपक्ष 17 सितंबर से 2 अक्टूबर तक रहेगा
पितृपक्ष के दौरान शुभ व मांगलिक कार्य जैसे कि शादी-विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, मुंडन या नई चीजों की खरीदारी भी वर्जित होती है. इसमें केवल पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है. पितृपक्ष में तिथि अनुसार ही पितरों का श्राद्ध किया जाता है. आइए आपको भादो पूर्णिमा के पहले श्राद्ध से लेकर आखिरी सर्वपितृ अमावस्या की तारीख बताते हैं.
पितृ पक्ष की श्राद्ध तिथियां
मंगलवार, 17 सितंबर पूर्णिमा श्राद्ध
(1) बुधवार, 18 सितंबर प्रतिपदा श्राद्ध
(2) गुरुवार, 19 सितंबर द्वितीया श्राद्ध
(3) शुक्रवार, 20 सितंबर तृतीया श्राद्ध
(4) शनिवार, 21 सितंबर चतुर्थी श्राद्ध
(5) रविवार, 22 सितंबर पंचमी श्राद्ध
(6) सोमवार, 23 सितंबर षष्ठी श्राद्ध
(7) मंगलवार, 24 सितंबर सप्तमी श्राद्ध
(8) बुधवार, 25 सितंबर अष्टमी श्राद्ध
(9) गुरुवार, 26 सितंबर नवमी श्राद्ध
(10) शुक्रवार, 27 सितंबर दशमी श्राद्ध
(11) शनिवार, 28 सितंबर एकादशी श्राद्ध
(12) रविवार, 29 सितंबर द्वादशी श्राद्ध
(13) सोमवार, 30 सितंबर त्रयोदशी श्राद्ध
(14) मंलगवार, 1 अक्टूबर चतुर्दशी श्राद्ध
(15) बुधवार 2 अक्टूबर अमावस्या तिथि पितृ विसर्जन
किस समय करना चाहिए श्राद्धकर्म
शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में सुबह और शाम के समय देवी-देवताओं की पूजा होती है. जबकि दोपहर का समय पितरों को समर्पित होता है. इसलिए पितरों का श्राद्ध दोपहर के समय करना ही उत्तम होता है. पितृपक्ष में आप किसी भी तिथि पर दोपहर 12 बजे के बाद श्राद्धकर्म कर सकते हैं. इस दौरान पितरों का तर्पण करें. ब्राह्मणों को भोज कराएं. उन्हें दान-दक्षिणा दें. श्राद्ध के दिन कौवे, चींटी, गाय, कुत्ते को भोग लगाएं