कोरोना के बाद आयुर्वेद में बढ़ी रुचि, लेकिन राजस्थान में दवाइयों का संकट
भरतपुर,संवाददाता : कोरोना महामारी के बाद आयुर्वेदिक दवाइयों की मांग में वृद्धि देखने को मिली है, लेकिन इसके बावजूद राजस्थान के करीब 18 राज्यों में आयुर्वेदिक दवाइयों की स्थिति खराब है, जिसमें उत्तर भारत के 70 फीसदी राज्य शामिल हैं। राजस्थान में केवल पांच रसायनशालाएं हैं जहां आयुर्वेदिक दवाइयां तैयार की जाती हैं, लेकिन भरतपुर की रसायनशाला में ग्यारह में से केवल दो दवाइयां बनाई जा रही हैं। राज्य के विभिन्न जिलों के आयुर्वेदिक औषधालयों में करीब 50 से अधिक दवाइयों का टोटा हो चुका है, जिसके कारण आम लोग बाहर से दवाइयां खरीदने को मजबूर हैं। खास बात यह है कि राज्य के आयुर्वेद विभाग ने इंडियन मेडिसिंस फार्मेस्यूटिकल कॉर्पोरेशन लिमिटेड से करीब 11 करोड़ की दवाइयां खरीदी हैं, लेकिन राज्य की रसायनशालाएं अभी तक दवाइयों का उत्पादन नहीं कर पा रही हैं। अधिकारियों के मुताबिक, हर वित्तीय वर्ष में टेंडर प्रक्रिया नवंबर माह तक पूरी कर ली जाती है, लेकिन इस बार बजट की कमी और प्रक्रिया में देरी के कारण औषधियों का टोटा बना हुआ है।
राज्य की प्रमुख रसायनशालाओं की स्थिति
भरतपुर की रसायनशाला में फिलहाल केवल दो प्रकार की दवाइयां बन रही हैं, जबकि अन्य दवाइयों के लिए सामग्री खरीदी जा रही है। अजमेर, उदयपुर, बारां (केलवाड़ा) और जोधपुर में टेंडर प्रक्रिया पूरी नहीं होने के कारण दवाइयों का उत्पादन लगभग नगण्य हो गया है। राज्य सरकार ने 14 अन्य प्रकार की औषधियां बाहर से खरीदी हैं, लेकिन अब भी रसायनशालाओं की स्थिति में सुधार की आवश्यकता है। फिलहाल, भरतपुर रसायनशाला में 10 जिलों के लिए दवाइयों की आपूर्ति होती है। भरतपुर रसायनशाला में दवाइयों के निर्माण की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए डॉ. आनंद शर्मा, निदेशक आयुर्वेदिक विभाग अजमेर ने कहा कि इस समय केवल दो दवाइयां उपलब्ध हैं और अन्य दवाइयों के नमूने जांच के लिए भेजे गए हैं, जिनका वितरण जल्द किया जाएगा। इस मामले में डॉ. हरिओम, मैनेजर रसायनशाला भरतपुर ने बताया कि इस बार केवल दो दवाइयां बन रही हैं और शेष दवाइयों के लिए इंडियन मेडिसिन्स फार्मेस्यूटिकल कॉर्पोरेशन लिमिटेड से दवाइयां खरीदी गई हैं, लेकिन स्वीकृति का इंतजार किया जा रहा है।
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