ऐसी दृष्टि आलस्य, निराशा, मानसिक तनाव और चिंता का बनती है कारण
डॉ उमाशंकर मिश्र,लखनऊ : शनि की तीन दृष्टियाँ होती हैं – तीसरी, सातवीं और दसवीं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि की हर दृष्टि का अपना प्रभाव होता है, लेकिन तीसरी दृष्टि सबसे ज्यादा अशुभ मानी जाती है। इसे शनि की वक्र दृष्टि भी कहा जाता है, क्योंकि यह शनि की टेढ़ी नजर होती है। कुंडली में जिस भाव में शनि होता है, शनि की तीसरी दृष्टि उस भाव के प्रभाव को कमजोर कर देती है। इसे ज्योतिष में बेहद खराब माना जाता है। शनि की यह दृष्टि किसी भी भाव में होने पर उस घर से संबंधित कार्यों में रुकावटें आती हैं। शनि की तीसरी दृष्टि आलस्य, निराशा, मानसिक तनाव और चिंता का कारण बनती है। व्यक्ति को बहुत मेहनत करने के बाद ही अच्छे परिणाम मिलते हैं।
शनि की तीसरी दृष्टि का असर
- इस दृष्टि के प्रभाव से व्यक्ति का मानसिक संतुलन बिगड़ सकता है।
- आलस्य बढ़ता है, और काम में मन नहीं लगता।
- निराशा और चिंता का सामना करना पड़ता है।
- मानसिक तनाव भी बढ़ता है।
शनि की साढ़ेसाती और ढैया का प्रभाव
यदि शनि की साढ़ेसाती या शनि की ढैया चल रही हो, तो इनका असर और भी गहरा होता है। इसके साथ ही शनि की महादशा या अंतर्दशा भी व्यक्ति को मानसिक परेशानी और चिंताओं में डाल सकती है।
उपाय
यदि आप शनि के प्रभाव से बचना चाहते हैं या इससे छुटकारा पाना चाहते हैं, तो शनिवार के संध्या समय में शनि महाराज को सरसों तेल चढ़ाना चाहिए। साथ ही, संकट मोचन हनुमान जी महाराज का दर्शन भी करें। ऐसा करने से शनि के प्रभाव से राहत मिल सकती है और जीवन में मंगलकारी बदलाव आ सकते हैं। इसलिए, अगर आपकी कुंडली में शनि की तीसरी दृष्टि का प्रभाव है, तो आपको अपनी मेहनत और प्रयासों पर ध्यान देने की जरूरत है, साथ ही शनि और हनुमान जी के उपायों से राहत पा सकते हैं।