ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्र
दिनांक – 10 दिसम्बर 2024
दिन – मंगलवार
विक्रम संवत – 2081
शक संवत – 1946
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – हेमंत ॠतु
मास – मार्गशीर्ष
पक्ष – शुक्ल
तिथि – दशमी रात्रि 1:00 बजे तक, तत्पश्चात एकादशी
नक्षत्र – उत्तरभाद्रपद (प्रातः 11:30 तक), तत्पश्चात रेवती (मूल नक्षत्र)
योग – व्यतीपात (रात्रि 8:48 तक), तत्पश्चात वरीयान
राहुकाल – शाम 03:00 से शाम 04:30 तक
सूर्योदय – 06:46
सूर्यास्त – 05:14
दिशाशूल – उत्तर दिशा में
व्रत पर्व विवरण – पंचक
कल मोक्षदा एकादशी के दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से पहाड़ जैसे पाप नष्ट होते हैं और सुख समृद्धि बढ़ती है।
एकादशी के दिन करने योग्य
आज 10 दिसंबर, मंगलवार रात्रि 1:00 बजे से एकादशी तिथि लग जाएगी, और कल 11 दिसंबर, बुधवार को रात्रि 10:39 तक एकादशी तिथि रहेगी। इसलिए एकादशी का व्रत 11 दिसंबर को करें और 12 दिसंबर, गुरुवार को सुबह 11:00 बजे तक पारण कर लें।
विशेष – कल 11 दिसंबर, बुधवार को एकादशी का व्रत (उपवास) रखें।
एकादशी को दीप जलाकर विष्णु सहस्त्रनाम पढ़ें। यदि विष्णु सहस्त्रनाम नहीं हो तो 10 माला गुरुमंत्र का जप करें। यदि घर में झगड़े होते हों, तो विष्णु सहस्त्रनाम पढ़कर घर के झगड़े शांत होंगे।
श्रीमद्भगवद्गीता जयंती
11 दिसंबर, बुधवार को श्रीमद्भगवद्गीता जयंती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इसलिए इस दिन गीता जयंती मनाई जाती है।
गीता दुनिया के उन ग्रंथों में से एक है, जो आज भी सबसे अधिक पढ़े जाते हैं और जीवन के हर पहलू पर व्याख्यायित होते हैं। गीता के 18 अध्यायों में 700 श्लोकों के माध्यम से हर समस्या का समाधान दिया गया है।
भगवद्गीता के कुछ प्रमुख श्लोक
1. श्लोक:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि।।
अर्थ: भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तुम केवल कर्म करने में अधिकार रखते हो, उसके फल के बारे में मत सोचो।
मैनेजमेंट सूत्र: बिना फल की इच्छा के कर्म करें, सफलता स्वाभाविक रूप से आएगी।
2. श्लोक:
योगस्थ: कुरु कर्माणि संगत्यक्तवा धनंजय।
सिद्धय-सिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।
अर्थ: कर्म करते समय यश और अपयश को समान रूप से देखो, यही योग है।
मैनेजमेंट सूत्र: अपने कर्तव्यों को बिना किसी सोच-विचार के पूरी निष्ठा से निभाएं, क्योंकि समत्व से ही सफलता मिलती है।
3. श्लोक
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना।
न चाभावयत: शांतिरशांतस्य कुत: सुखम्।
अर्थ: जो योगी नहीं है, उसका मन स्थिर नहीं रहता और उसे शांति नहीं मिलती, और बिना शांति के सुख नहीं मिलता।
मैनेजमेंट सूत्र: मानसिक शांति ही सुख का वास्तविक स्रोत है, इसलिए मन पर नियंत्रण और आत्मज्ञान आवश्यक हैं।