850 साल पुराना दरगाह का इतिहास और अकीदत का मरकज (केंद्र)
अजमेर,संवाददाता : राजस्थान के अजमेर में स्थित विश्व प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के दीवान सैय्यद नसीरुद्दीन ने कहा है कि देश में दरगाह और मस्जिदों में मंदिर ढूंढने की जो नई परिपाटी शुरू हुई है, वह न केवल देश और समाज के हित में नहीं है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ी के लिए भी ठीक नहीं है।
नसीरुद्दीन ने अजमेर में हिंदू मंदिर का दावा संबंधित वाद को न्यायालय में सुनवाई के लिए स्वीकार करने और पक्षकारों को नोटिस जारी करने के समाचारों के बाद मीडिया से अपनी प्रतिक्रिया में यह बात कही। उन्होंने कहा कि दरगाह का इतिहास 850 साल पुराना है और यह अकीदत का मरकज (केंद्र) है, जो इतिहास का हिस्सा बन चुका है। उन्होंने कहा कि हर दौर में लोग यहां आकर अपनी मुरादें मांगते हैं और उनकी इच्छाएं पूरी होती हैं। प्रधानमंत्री और अन्य प्रमुख राजनीतिज्ञ भी दरगाह पर चादर पेश करने आते हैं। यह परंपरा 1236 ईस्वी से चली आ रही है, जब ख्वाजा साहब का इंतकाल हुआ और दरगाह बनाई गई।सैय्यद नसीरुद्दीन ने यह भी कहा कि दरगाह के ऐतिहासिक महत्व और धार्मिक भावना को नजरअंदाज करना समाज में विवाद और असहमति को बढ़ावा देगा, जो किसी के भी हित में नहीं है।