शांडिल्य मुनि ने शंकराचार्य ओंकारानंद सरस्वती से की मुलाकात
प्रयागराज,संवाददाता : तीर्थराज प्रयागराज के महाकुंभ मेला में भागवत व्यास ओंकार रत्न प्रवक्ता शंकराचार्य प्रयागपीठ शांडिल्य मुनि ने लड्डू गोपाल संस्थान में अपने प्रवचन के दौरान ओंकार की व्याख्या करते हुए कहा कि मुंडकोपनिषद में ब्रह्म की प्राप्ति के लिए प्रणव ज्ञान और प्रणव ध्यान को ही मुख्य साधन बताया गया है।
उन्होंने कहा कि “तस्य वाचक प्रणव:” अर्थात ईश्वर का वाचक प्रणव है, इसलिए ईश्वर को प्राप्त करने के लिए ओंकार का रहस्य समझना आवश्यक है और इसके लिए ओंकार ज्ञान के मर्मज्ञ गुरु की शरण में जाना होगा। प्रवचन के बाद शांडिल्य मुनि ने शंकराचार्य प्रयागपीठ के शिविर में जाकर शंकराचार्य ओंकारानंद सरस्वती महाराज से आशीर्वाद लिया।
इसी कड़ी में, अंतरराष्ट्रीय भागवत रामकथा व्यास अखिलेशानंद महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि प्रयागराज महाकुंभ में मां गंगा के पावन जल में स्नान कर भक्त अपने तन को पवित्र कर रहे हैं और ज्ञान गंगा में स्नान कर अपने मन को शुद्ध कर रहे हैं। महाराज श्री ने श्रीमद्भागवत कथा के प्रसंग में विदुर और विदुरानी के भगवान श्री कृष्ण के अनन्य भक्त होने का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रभु को पदार्थ प्रिय नहीं है, वे तो केवल भाव प्रिय हैं। उन्होंने बताया कि दुर्योधन के 56 प्रकार के व्यंजन छोड़कर प्रभु विदुर जी के घर केवल केले के छिलके खाने को बैठ जाते हैं। प्रभु ने दुर्योधन से स्पष्ट कहा कि व्यक्ति किसी के घर दो स्थितियों में भोजन करता है – या तो आभाव में या प्रभाव में। “लेकिन मेरे जीवन में कोई आभाव नहीं है और न ही तुमने कोई ऐसा कार्य किया है जिसके प्रभाव में मैं भोजन करने आ जाऊं। मैं तो बस अपने भक्त के भाव को ही स्वीकार करता हूं।” इस अवसर पर कई श्रद्धालु और भक्तजन उपस्थित थे, जिन्होंने महाराज श्री के प्रवचन का भरपूर लाभ उठाया।























