स्वतंत्रता के बाद भी निभाई सक्रिय भूमिका, बने विधायक, सांसद और जनप्रतिनिधि
बरेली,संवाददाता : आज़ादी की लड़ाई में बरेली जनपद की भूमि भी पीछे नहीं रही। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, यहां के 398 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने देश को आज़ाद कराने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। 15 अगस्त 1947 की सुबह का वह अहसास भले ही आज की पीढ़ी को न हो, लेकिन इन सेनानियों का संघर्ष आज भी जनपद के गर्व का विषय है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी इन सेनानियों ने जिले की नींव को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई।
20 से अधिक सेनानी बने विधायक-सांसद और जनप्रतिनिधि
स्वतंत्रता के बाद बरेली के 20 से अधिक स्वतंत्रता सेनानियों ने लोकसभा, विधानसभा, जिला परिषद, और नगर पालिका में जनप्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हुए जनकल्याण को सर्वोपरि रखा। ऐसे कई सेनानी थे जो सरकारी दस्तावेजों में दर्ज नहीं हो सके, लेकिन उन्होंने बिना किसी मान-सम्मान की चाह में आज़ादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
कुछ प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी एवं उनकी गाथा
जियाराम सक्सेना (बमनपुरी)
1922 में असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण 3 वर्ष की सजा हुई। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य और बरेली नगर पालिका के चेयरमैन रहे।
टिकैत राम वर्मा (महावीर टोला)
1920 में आंदोलन में कूदे। अखबार के माध्यम से लोगों को जागरूक किया। 1930-31 में बरेली शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे।
दामोदर स्वरूप सेठ (बिहारीपुर)
प्रसिद्ध काकोरी कांड के अभियुक्त। कई बार जेल गए। अंतरित संसद के सदस्य और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे।
दुर्राब सिंह (उरला, आंवला)
व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया, छह माह की सजा हुई। जिला परिषद सदस्य रहे।
नौरगंलाल (बमनपुरी)
सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। लंबे समय तक जेल में रहे। विधानसभा सदस्य और भ्रष्टाचार निरोधक समिति के अध्यक्ष रहे।
पृथ्वीराज सिंह (बुधौली, भुता)
डिप्टी कलेक्टर का पद त्यागकर आंदोलन में कूदे। 19 वर्ष तक जिला कांग्रेस अध्यक्ष और विधानसभा सदस्य रहे।
प्रताप चंद्र आज़ाद (रामपुर गार्डन)
भारत छोड़ो आंदोलन में जेल गए। उत्तर प्रदेश छात्र संघ और विधान परिषद में सदस्य रहे।
ब्रजमोहन लाल शास्त्री (कूचा सीताराम)
असहयोग और भारत छोड़ो आंदोलन में जेल गए। नगर व जिला परिषद अध्यक्ष और विधानसभा सदस्य बने।
बाबूराम (चठिया)
सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। 1957 में विधानसभा सदस्य चुने गए।
मोती सिंह वकील (बुधौली, फरीदपुर)
1921 में छह माह की सजा। जिला बोर्ड के चेयरमैन रहे।
शिवराज बहादुर (बीजाऊ, नवाबगंज)
आजाद प्रेस से सरकार विरोधी इश्तहार छापने में पकड़े गए। विधानसभा सदस्य बने।
सतीश चंद्र (आलमगिरीगंज)
कई आंदोलनों में भाग लिया। अंतरित संसद, लोकसभा सदस्य और केंद्रीय मंत्री बने।
महिलाओं ने भी निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
कुसुम कुमारी (पत्नी दरबारी लाल शर्मा)
1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लेने पर छह माह की कैद। जिला परिषद बरेली की सदस्य रहीं।
डॉक्टर होकर भी आंदोलन में उतरे
डॉ. दरबारी लाल शर्मा (जगतपुर)
सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया, जेल गए। इंडियन मेडिकल बोर्ड के सदस्य, विधान परिषद सदस्य और जिला परिषद अध्यक्ष रहे।
अन्य प्रमुख सेनानी
- अब्दुल रऊफ: भारत छोड़ो आंदोलन में नजरबंद, विधान परिषद सदस्य।
- अब्दुल वाजिद: आनरेरी मजिस्ट्रेट पद त्यागा, कांग्रेस में शामिल हुए, सेंट्रल असेंबली व नगर पालिका अध्यक्ष।
- अधो नारायण: असहयोग, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में जेल गए। नगर पालिका सदस्य।
- गोपीनाथ साहू: 1930, 1940 और 1942 में जेल गए। बाद में नगर पालिका सदस्य और कांग्रेस अध्यक्ष बने।
- चिरंजीव लाल गुप्ता: 1918 में कांग्रेस अधिवेशन में प्रतिनिधि, 1920 में जिला कांग्रेस उप मंत्री।
बरेली का यह गौरवशाली इतिहास हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता केवल एक दिन की उपलब्धि नहीं, बल्कि हजारों बलिदानों और सतत संघर्षों का परिणाम है।