कम बारिश वाले क्षेत्रों में बाजरे की खेती को मिल रहा प्रोत्साहन
लखनऊ,संवाददाता : उत्तर प्रदेश सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में एक और ठोस कदम उठा रही है। अब कम वर्षा वाले जिलों में पारंपरिक धान की जगह पौष्टिक श्रीअन्न बाजरा को बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार बाजरे की खेती को प्रोत्साहन देकर स्वस्थ आहार और किसानों की आर्थिक उन्नति दोनों को साधने की नीति पर काम कर रही है। प्रदेश में गेंहूं, धान और मक्का के बाद करीब 10 लाख हेक्टेयर भूमि पर बाजरा की खेती होती है। बाजरा न सिर्फ फाइबर, प्रोटीन, बी-कॉम्प्लेक्स, कैल्शियम और फास्फोरस जैसे पोषक तत्वों से भरपूर है, बल्कि डायबिटीज, हृदय रोग और मोटापे जैसी बीमारियों के खिलाफ भी कारगर है। इसकी बाजार में भी अच्छी मांग बनी हुई है।
कम वर्षा, ज्यादा मुनाफा:
इस बार मानसून की अनिश्चितता के चलते प्रदेश के 29 जिलों में औसत से कम वर्षा दर्ज की गई है। ऐसे में 400-500 मिमी वर्षा में भी सफलतापूर्वक उगाई जा सकने वाली बाजरे की खेती एक आकर्षक विकल्प बनकर सामने आई है। अगस्त के मध्य तक बुवाई करने वाले किसान नवंबर तक फसल काटकर रबी सीजन की तैयारी भी कर सकते हैं।
कम लागत, ज्यादा लाभ:
कृषि विभाग के अनुसार बाजरे की खेती में लागत कम आती है और उत्पादन क्षमता भी अच्छी है।
सामान्य उत्पादन: 25-30 क्विंटल/हेक्टेयर
संकर प्रजातियाँ: 35-40 क्विंटल/हेक्टेयर
प्रमुख संकर किस्में: 86M84, BIO-8145, NBH-5929, धनशक्ति
सरकार की ओर से राजकीय कृषि बीज भंडारों पर अनुदानित बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं, साथ ही 2022-23 से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद भी की जा रही है।
भूमि सुधार और रोग नियंत्रण:
धान की अपेक्षा असमतल एवं वर्षा आधारित भूमि में भी बाजरा उपजाऊ साबित हो रहा है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि बुवाई से पहले भूमि को ट्राइकोडरमा हारजीएनम (2%) – 2.5 किग्रा/हेक्टेयर से शोधन करना जरूरी है ताकि भूमि जनित रोगों से बचाव हो सके।
सरकारी अपील:
कृषि विभाग ने सभी किसानों से अपील की है कि वे खरीफ मौसम में भूमि की उपयुक्तता के अनुसार बाजरा की खेती अपनाएं और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर अधिकतम मुनाफा कमाएं। एक तरफ स्वास्थ्य, दूसरी तरफ मुनाफा—बाजरा है किसानों की नई उम्मीद!