गाजीपुर के ददरी घाट पर सनातन की श्रद्धा का साक्षात प्रमाण
लखनऊ,संवाददाता : कण-कण में ईश्वर का वास है — सनातन परंपरा की यह कहावत तब यथार्थ में बदलती दिखी जब गाजीपुर के ददरी घाट पर गंगा की लहरों पर तैरता हुआ एक ढाई से तीन क्विंटल वजनी पत्थर लोगों को दिखा। सावन के पावन महीने में घटित यह दृश्य न केवल रोमांचकारी था, बल्कि हर श्रद्धालु की आत्मा को भीतर तक झकझोर गया। गांव के श्रद्धालु इसे केवल एक पत्थर नहीं, बल्कि त्रेतायुग की स्मृति और भगवान श्रीराम की महिमा का प्रत्यक्ष प्रमाण मान रहे हैं। घाट के महंत रामाश्रय दास कहते हैं, यह पत्थर निश्चित ही दिव्य ऊर्जा से युक्त है, संभव है कि यह त्रेतायुग का प्रतीक हो।
राम का नाम, और पत्थर भी तैर जाए
इस चमत्कारी पत्थर को लेकर पौराणिक कथा भी तेजी से चर्चाओं में है। रामायण काल में नल-नील नामक वानरों को ऋषियों ने यह श्राप दिया था कि वे जो भी वस्तु जल में फेंकेंगे, वह नहीं डूबेगी। यही श्राप रामसेतु निर्माण में वरदान साबित हुआ। भगवान राम की सेना ने उन्हीं वानरों के हाथों पत्थर समुद्र में डलवाए, और वे तैरने लगे। हालांकि इंटरनेट मीडिया पर वायरल हो रहे इस वीडियो की संवाददाता डॉट कॉम पुष्टि नहीं करता।
आज गाजीपुर की गंगा तट पर मिला यह चमत्कारी पत्थर, ठीक उसी युग का प्रतीक बनकर उभरा है। हजारों श्रद्धालु इस पत्थर को रामसेतु की निशानी मानकर गंगाजल से स्नान कराकर पूजन कर रहे हैं। घाट पर “जय श्रीराम” के जयकारों से वातावरण भक्तिमय हो गया है।
विज्ञान मौन है, श्रद्धा मुखर — पत्थर नहीं, यह सनातन कि श्रद्धा का जीता जागता प्रमाण
स्थानीय प्रशासन ने सुरक्षा की दृष्टि से घाट पर निगरानी बढ़ा दी है, जबकि विशेषज्ञ अब इस पत्थर की वैज्ञानिक जांच की तैयारी में जुटे हैं। लेकिन श्रद्धालु साफ कहते हैं — “यह आस्था का विषय है, और आस्था किसी प्रयोगशाला की मोहताज नहीं होती।”
इस पत्थर ने सावन की गंगा को सिर्फ पवित्रता नहीं, चमत्कार और श्रद्धा की जीवंत अनुभूति से भर दिया है। यह एक बार फिर साबित करता है कि भारत में हर नदी, हर घाट और हर पत्थर — सिर्फ भूमि के टुकड़े नहीं, बल्कि सनातन चेतना की अमिट छाप हैं। यह सनातन की श्रद्धा का जीता जागता उदाहरण है।