स्पीकर ने इस मामले की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी का गठन करने की घोषणा की है
नई दिल्ली,संवाददाता : भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में घिरे इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हो गई है। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने संसद में प्राप्त प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए एक तीन सदस्यीय जांच समिति के गठन की घोषणा की है।
जांच समिति में कौन-कौन?
स्पीकर द्वारा गठित समिति में शामिल हैं: सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अरविंद कुमार, मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव, कर्नाटक हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता वी.बी. आचार्य स्पीकर ओम बिरला ने कहा, मुझे यह प्रस्ताव नियमानुसार प्राप्त हुआ, और मैंने संविधान की धारा 124(4) और न्यायिक जवाबदेही संबंधी प्रावधानों के तहत समिति का गठन किया है।
क्या है पूरा मामला?
पूरा विवाद 14 मार्च 2025 को शुरू हुआ जब दिल्ली स्थित जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में आग लगने की घटना हुई। आग बुझाने पहुँची दमकल टीम को आउट हाउस में अधजले नोटों का ढेर मिला। इस घटना का खुलासा कुछ दिनों बाद हुआ, जब मीडिया में खबरें लीक हुईं। मामले को गंभीरता से लेते हुए, सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने तीन हाईकोर्ट जजों की एक समिति बनाकर जांच के आदेश दिए। इससे पहले कोलेजियम ने त्वरित कार्रवाई करते हुए वर्मा का तबादला दिल्ली से इलाहाबाद हाईकोर्ट कर दिया था, जो बाद में सवालों के घेरे में आ गया।
इलाहाबाद बार एसोसिएशन का विरोध
इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने जस्टिस वर्मा के स्थानांतरण का कड़ा विरोध किया और इसे न्यायपालिका की गरिमा से खिलवाड़ बताया। एसोसिएशन ने विरोधस्वरूप हड़ताल की भी घोषणा कर दी थी, जिससे मामला और गरमाया।
जस्टिस वर्मा ने दी सफाई
जस्टिस यशवंत वर्मा ने दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखकर सभी आरोपों को “बेतुका, अविश्वसनीय और हास्यास्पद” बताया। उन्होंने कहा: कोई भी व्यक्ति खुले स्थान या आउट हाउस में नकदी नहीं रखता, यह पूरी तरह अविश्वसनीय है। हालांकि, उनकी सफाई का जांच प्रक्रिया पर कोई असर नहीं पड़ा।इस बयान के बाद गठित समिति अब आरोपों की विधिवत जांच करेगी। अगर आरोप सिद्ध होते हैं, तो संसद में महाभियोग प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए भेजा जा सकता है। यह प्रक्रिया भारतीय न्यायिक इतिहास में एक दुर्लभ लेकिन महत्वपूर्ण उदाहरण होगी।