मोदी-पुतिन बैठक में दुर्लभ तोहफ़े ने बढ़ाई गर्मजोशी और विश्वास
नई दिल्ली संवाददाता : रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का दो दिवसीय भारत दौरा न सिर्फ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने का मंच बना, बल्कि एक सांस्कृतिक संदेश के रूप में भी चमका। 4 दिसंबर 2025 की शाम, जब पुतिन दिल्ली के पलम एयरपोर्ट पर उतरे, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद उनकी अगवानी की – एक दुर्लभ प्रोटोकॉल ब्रेक, जो दोनों देशों की गहरी दोस्ती का प्रतीक था। हवाई अड्डे पर गर्मजोशी भरी मुलाकात के बाद दोनों नेता एक ही गाड़ी में सवार होकर 7, लोक कल्याण मार्ग पहुंचे। यहां पीएम मोदी ने पुतिन के सम्मान में निजी डिनर का आयोजन किया, जहां लगभग ढाई घंटे की बंद कमरे की बैठक में द्विपक्षीय मुद्दों पर गहन चर्चा हुई।
विवाद से विजय तक का सफर
इस बैठक का सबसे यादगार पल तब आया, जब पीएम मोदी ने पुतिन को रूसी भाषा में अनुवादित भगवद्गीता की एक प्रति भेंट की। यह महज एक किताब नहीं, बल्कि लाखों लोगों को प्रेरित करने वाले शाश्वत संदेश का प्रतीक था। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पीएम ने लिखा, “राष्ट्रपति पुतिन को रूसी में गीता की प्रति भेंट की। गीता की शिक्षाएं दुनिया भर के करोड़ों लोगों को प्रेरणा देती हैं।” यह उपहार भारत-रूस संबंधों की मजबूती को रेखांकित करता है, जहां आध्यात्मिक मूल्य रणनीतिक हितों के साथ कदम मिलाते हैं।
लेकिन इस तोहफे की पृष्ठभूमि में एक चौंकाने वाली कहानी छिपी है। करीब 14 साल पहले, 2011 में, साइबेरिया के टॉम्स्क शहर में भगवद्गीता का रूसी संस्करण ही विवादों के घेरे में आ गया था। इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस (इस्कॉन) द्वारा प्रकाशित “भगवद्गीता ऐज इट इज” – जो ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद की टीका के साथ है – को स्थानीय अभियोजकों ने “उग्रवादी साहित्य” करार देने की कोशिश की। टॉम्स्क स्टेट यूनिवर्सिटी के विद्वानों की एक रिपोर्ट ने दावा किया कि प्रभुपाद की व्याख्याएं धार्मिक, सामाजिक और नस्लीय असहिष्णुता को बढ़ावा देती हैं। रूसी फेडरल सिक्योरिटी सर्विस (एफएसबी) की शिकायत पर अदालत में मुकदमा चला, जिसमें किताब को “एक्सट्रीमिस्ट मटेरियल” लिस्ट में डालने की मांग की गई – एक ऐसी सूची जिसमें हिटलर की “माईं काम्फ” जैसी किताबें शामिल हैं।























