फसल की उपज और गुणवत्ता दोनों में होगी वृद्धि
लखनऊ संवाददाता : रबी 2025 की तैयारी को देखते हुए गेहूँ, दलहनी और तिलहनी फसलों की बुवाई के लिए किसानों को गुणवत्तायुक्त फास्फेटिक उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने तथा डीएपी पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य से जिला कृषि अधिकारी एस.एन. चौधरी ने किसानों के लिए महत्वपूर्ण परामर्श जारी किया है।
कृषि विभाग के अनुसार, डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) में केवल नाइट्रोजन और फास्फोरस पोषक तत्व होते हैं, जबकि एनपीके उर्वरक में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का संतुलित मिश्रण होता है।
इसके उपयोग से —
- फसल की उपज और गुणवत्ता दोनों में वृद्धि,
- पौधों का मजबूत विकास,
- फूल और फल में सुधार,
- रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि,
- तथा मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता है।
अधिकारी ने बताया कि अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से लागत बढ़ती है और भूमि की उर्वरता घटती है। इसलिए किसान भाई मृदा परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर ही उर्वरकों का संतुलित प्रयोग करें।किसानों को सलाह दी गई है कि वे बुवाई के समय फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा दें, जबकि नाइट्रोजन की पूर्ति टॉप ड्रेसिंग के माध्यम से करें।दलहनी फसलों में राइजोबियम कल्चर और तिलहनी फसलों में सल्फर का प्रयोग लाभकारी रहेगा।
डीएपी के विकल्प के रूप में किसान एनपीकेएस, एसएसपी, पोटाश, नैनो डीएपी, नैनो यूरिया, जीवामृत, बीजामृत, घन जीवामृत, गोबर खाद और कम्पोस्ट का प्रयोग कर सकते हैं।ये सभी उर्वरक जनपद की समितियों एवं निजी दुकानों पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।
जनपद में उपलब्धता (सुलतानपुर):
- एनपीके: 5039 मीट्रिक टन
- सिंगल सुपर फास्फेट (SSP): 4708.18 मीट्रिक टन
- पोटाश: 413 मीट्रिक टन























