महिला के आत्मदाह के मामले में उनके खिलाफ मुकदमे को रद्द करने का किया था अनुरोध
लखनऊ, संवाददाता : इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के पूर्व सांसद अतुल सिंह उर्फ अतुल राय की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने एक महिला के आत्मदाह के मामले में उनके खिलाफ मुकदमे को रद्द करने का अनुरोध किया था। अदालत ने कहा कि पीड़िता ने खुद ‘फेसबुक’ पर घटना का सीधा प्रसारण किया था और अतुल राय तथा पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर पर परेशान करने का आरोप लगाया था।
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि पीड़िता आरोपी अमिताभ ठाकुर से मिलने लखनऊ भी गई थी, इसलिए घटना का कुछ हिस्सा लखनऊ में हुआ था। ऐसे में लखनऊ की सांसद-विधायक (एमपी-एमएलए) अदालत में सुनवाई करने में कोई हर्ज नहीं है। न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की पीठ ने पूर्व सांसद की याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश पारित किया। याचिका पर विस्तृत सुनवाई के बाद अदालत ने 20 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था, जिसे मंगलवार को सुनाया गया। अदालत ने विशेष एमपी-एमएलए अदालत से मामले की सुनवाई में तेजी लाने और अनावश्यक स्थगन दिए बिना इसे निस्तारित करने का भी निर्देश दिया। इससे पहले, अपर महाधिवक्ता वी. के. शाही ने बसपा के पूर्व सांसद की याचिका का कड़ा विरोध करते हुए कहा था कि अतुल राय और पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर पर महिला और उसके दोस्त को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है। शाही ने कहा कि महिला ने अतुल राय के खिलाफ परेशान करने और प्रताड़ित करने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। प्राथमिकी के अनुसार, आरोप लगाया गया था कि इस मामले में पीड़िता और उसके दोस्त पर दबाव बनाने के लिए परेशान किया जा रहा था, जिसके कारण दोनों ने 16 अगस्त 2021 को उच्चतम न्यायालय के गेट के सामने आत्मदाह कर लिया। महिला ने इस घटना का फेसबुक के माध्यम से प्रसारण किया था, जिसमें उसने अतुल राय और अमिताभ ठाकुर पर गंभीर आरोप लगाए थे।
याचिका दाखिल करते हुए दलील दी गई थी कि अतुल राय दुष्कर्म के मामले में बरी हो चुके हैं, इसलिए उनके खिलाफ महिला और उसके दोस्त को आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई मामला नहीं है। साथ ही यह भी कहा गया कि आत्मदाह की घटना दिल्ली में हुई, इसलिए लखनऊ पुलिस को मामले की जांच करने का अधिकार नहीं है और न ही इस मामले की सुनवाई लखनऊ की स्थानीय अदालत में हो सकती है। लेकिन उच्च न्यायालय ने इन दलीलों को खारिज कर दिया और कहा कि ये मामले निचली अदालत में विचारणीय हैं और उच्च न्यायालय इस स्तर पर आरोपों और साक्ष्यों की सत्यता का मूल्यांकन नहीं कर सकता।