जीवन से अंधकार, क्लेश, रोग और दरिद्रता को हटाने का भी सशक्त माध्यम है
डॉ. उमाशंकर मिश्रा,संवाददाता : कार्तिक मास में सबसे महत्वपूर्ण साधना मानी जाती है दीपदान। यह न केवल देवताओं को अर्पित एक प्रतीकात्मक प्रकाश है, बल्कि जीवन से अंधकार, क्लेश, रोग और दरिद्रता को हटाने का भी सशक्त माध्यम है।
दीपदान का समय:
प्रत्येक दिन प्रदोष काल में — अर्थात् सूर्यास्त के आसपास का समय — दीपदान अवश्य करें।
अंतिम तिथि: कार्तिक पूर्णिमा (05 नवम्बर 2025) तक प्रतिदिन यह दीपदान किया जा सकता है।
दीपदान की विधि और स्थान
प्रत्येक दिन निम्नलिखित स्थानों पर दीपक जलाने का विशेष पुण्यफल बताया गया है:
- शिवलिंग के समक्ष:
प्रतिदिन एक दीपक शिवलिंग के समक्ष जलाएं। मंदिर जाना संभव न हो तो घर पर भी पूजन स्थान में कर सकते हैं। - भगवान नारायण के समक्ष:
मंदिर में या घर में भगवान विष्णु के समक्ष एक दीपक अर्पित करें। - तुलसी के समीप:
तुलसी का पूजन कार्तिक मास में विशेष पुण्यदायक माना गया है। प्रतिदिन दीपक जलाएं, चाहे रविवार हो या अन्य दिन। - पीपल वृक्ष के पास:
पीपल को ब्रह्मस्वरूप माना गया है। वहां एक दीपक जरूर जलाएं। - पितरों के लिए:
घर में पितरों के स्थान पर या बाहर किसी पवित्र स्थान पर दीपक अर्पित करें। - वटवृक्ष (बरगद) के समीप:
यदि संभव हो तो वटवृक्ष के नीचे प्रतिदिन दीपक अर्पित करें। - आकाशदीप:
एक दीपक किसी ऊंचे स्थान पर बांधें, जो दूर से दिखाई दे — इसे आकाशदीप कहा जाता है। यह समस्त दिशाओं में प्रकाश फैलाता है। - नदी, सागर या पर्वत के समीप:
यदि आपके घर के पास कोई प्राकृतिक स्थल हो — जैसे नदी, तालाब, पर्वत या सागर — वहाँ एक दीपक जलाएं। - गौशाला में:
पास में कोई गौशाला हो तो वहाँ एक दीपक अवश्य अर्पित करें। - आंवला वृक्ष के समीप:
आंवला वृक्ष के पास भी दीपक जलाने से विशेष फल मिलता है।
अन्य आवश्यक बातें:
- प्रतिदिन मिट्टी के नये दीपक का प्रयोग करें।
- उपयोग से पूर्व दीपक को कम से कम 2 घंटे पानी में भिगोना चाहिए।
- यदि पीतल या कांसे का दीपक है, तो उसे धोकर पुनः उपयोग किया जा सकता है।