सनातन परंपरा में होता है तुलसी माँ का दिव्य स्थान
डॉ. उमाशंकर मिश्रा,लखनऊ : सनातन हिन्दू धर्म में तुलसी केवल एक वनस्पति नहीं, बल्कि साक्षात देवी-तत्त्व मानी गई हैं। जैसे गंगा, शालिग्राम और गौ माता में ईश्वर का वास स्वीकार किया गया है, उसी प्रकार तुलसी में भगवती शक्ति का आविर्भाव माना गया है। स्कन्द पुराण के अनुसार तुलसी के दर्शन से पापों का नाश, स्पर्श से शरीर की शुद्धि, पूजन से रोगों का क्षय तथा जल अर्पण से मृत्यु-भय का निवारण होता है।
तुलसी का तात्त्विक स्वरूप
तुलसी = वृंदा = योगमाया
पद्म पुराण, स्कन्द पुराण एवं ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार— तुलसी माता पूर्वजन्म में वृंदा देवी थीं, वे भगवान विष्णु की योगमाया शक्ति हैं, उनका अवतरण भक्ति की रक्षा एवं अधर्म के नाश हेतु हुआ इसी कारण तुलसी को पतिव्रता धर्म की मूर्ति तथा भक्ति की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है।
तुलसी और भगवान विष्णु की उपासना
गरुड़ पुराण में उल्लेख है— अतुला तुलसी पत्रं विष्णोः प्रीतिकरं सदा। अर्थात तुलसी दल भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। तुलसी के बिना— विष्णु पूजा, शालिग्राम पूजन, एकादशी व्रत पूर्ण फलदायी नहीं माने जाते। तुलसी दल यह दर्शाता है कि पूजा केवल द्रव्य से नहीं, बल्कि श्रद्धा, भावना और समर्पण से स्वीकार होती है।
तुलसी और कर्म–पाप सिद्धांत
शास्त्रों के अनुसार— तुलसी रोपण से महापापों का क्षय, तुलसी सींचन से पूर्वजन्म के पाप नष्ट, तुलसी सेवा से कुल का उद्धार इसी कारण तुलसी को पापहारिणी कहा गया है।
तुलसी और पितृ तत्त्व
तुलसी के समीप दीपदान करने से— पितृ तृप्त होते हैं , वंश की बाधाएँ दूर होती हैं, अकाल मृत्यु का भय कम होता है
आज तुलसी पूजन विधि (शास्त्रीय आचार अनुसार)
प्रातः स्नान के पश्चात— तुलसी को जल अर्पण, दीप प्रज्वलन, पुष्प, अक्षत अर्पण, मंत्र जप— महाप्रसादजननी सर्वसौभाग्यवर्धिनी।
आधिव्याधिहरि नित्यं तुलसी त्वं नमोऽस्तु ते॥ इसके बाद परिक्रमा, आरती, जप एवं शांत ध्यान करने से मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक बल की वृद्धि होती है।
तुलसी और पंचमहाभूत संतुलन
तुलसी— पृथ्वी (रोपण), जल (सींचन), अग्नि (दीप), वायु (शुद्ध वातावरण), आकाश (मंत्र ध्वनि) इन पाँचों महाभूतों का संतुलन स्थापित करती हैं, इसलिए तुलसी पूजन को पूर्ण वैदिक कर्म कहा गया है।
तुलसी पूजन के फल
आध्यात्मिक फल
- भक्ति में वृद्धि
- मन की शुद्धि
- मोक्ष मार्ग की सरलता
धार्मिक फल
- पाप क्षय
- कुल कल्याण
- लक्ष्मी की स्थिरता
सांस्कृतिक फल
- हिन्दू पहचान का संरक्षण
- संस्कारों की रक्षा
- परंपरा का संवर्धन
तुलसी: जीवन की साधना
तुलसी घर को तीर्थ, मन को मंदिर और जीवन को साधना बनाती हैं। आज 25 दिसंबर को तुलसी पूजन कर सनातन समाज यह संदेश देता है कि उसकी आस्था, संस्कृति और धर्म आज भी जीवित और सशक्त हैं।























