ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा
दिनांक – 08 फरवरी 2025
दिन – शनिवार
विक्रम संवत – 2081
शक संवत – 1946
अयन – उत्तरायण
ऋतु – शिशिर ऋतु
मास – माघ
पक्ष – शुक्ल
तिथि – आज एकादशी रात्रि 08:55 तक तत्पश्चात द्वादशी एकादशी का पारण कल 9 फरवरी दिन रविवार सुबह 9:00 बजे से 11:00 बजे के मध्य
नक्षत्र – मृगशिरा शाम 06:59 तक तत्पश्चात आर्द्रा
योग – वैधृति सायं 03:09 तक तत्पश्चात विष्कंभ
राहुकाल – सुबह 09:00 से सुबह 10:30 तक
सूर्योदय – 06:30
सूर्यास्त – 05:30
दिशाशूल – पूर्व दिशा में
व्रत पर्व विवरण – जया एकादशी
विशेष – हर एकादशी को श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।
“राम रामेति रामेति। रमे रामे मनोरमे।
सहस्त्र नाम त तुल्यं। राम नाम वरानने।।”
आज एकादशी के दिन इस मंत्र के पाठ से विष्णु सहस्रनाम के जप के समान पुण्य प्राप्त होता है।
एकादशी के दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए।
एकादशी को चावल व साबूदाना खाना वर्जित है।
जो दोनों पक्षों की एकादशियों को आँवले के रस का प्रयोग कर स्नान करते हैं, उनके पाप नष्ट हो जाते हैं।
जया एकादशी – प्रेत मोचिनी एकादशी
भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया, “ये जया एकादशी (आज 08 फरवरी 2025) (प्रेत मोचिनी एकादशी) का उपवास रखने वाले को भोग भी मिलता है – संसार का सुख-संपत्ति भी मिलती है। ब्रह्महत्या जैसे पापों को नष्ट करने वाली यह एकादशी है। जो जया एकादशी का व्रत रखेगा, उसे प्रेत योनि में कभी नहीं जाना पड़ेगा।”
भीष्म द्वादशी व्रत
माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी का व्रत किया जाता है। इस बार यह व्रत 09 फरवरी, रविवार को है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
व्रत विधि
भीष्म द्वादशी की सुबह स्नान आदि करने के बाद संध्यावंदन करें और षोडशोपचार विधि से लक्ष्मीनारायण भगवान की पूजा करें। पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मौली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग करें। पंचामृत तैयार कर भगवान को भोग लगाएं। पूजा के बाद भीष्म द्वादशी की कथा सुनें और देवी लक्ष्मी समेत अन्य देवों की स्तुति करें। पूजा समाप्त होने पर चरणामृत और प्रसाद का वितरण करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा दें।
भीष्म द्वादशी का महत्व
धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस व्रत में ब्राह्मण को दान, पितृ तर्पण, हवन, यज्ञ आदि करने से अमोघ फल प्राप्त होता है। इस व्रत में “ॐ नमो नारायणाय नमः” आदि नामों से भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए, जिससे सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।