ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्रा
दिनांक : 19 सितम्बर 2025
वार : शुक्रवार
विक्रम संवत : 2082
शक संवत : 1947
अयन : दक्षिणायन
ऋतु : शरद ऋतु
मास : आश्विन
पक्ष : कृष्ण
तिथि : त्रयोदशी रात्रि 11:47 तक, तत्पश्चात चतुर्दशी
नक्षत्र : अश्लेशा प्रातः 8:49 तक, तत्पश्चात मघा
योग : सिद्ध रात्रि 11:03 तक, तत्पश्चात साध्य
राहुकाल : प्रातः 10:30 से दोपहर 12:00 तक
सूर्योदय : प्रातः 5:57
सूर्यास्त : सायं 6:03
दिशाशूल : पश्चिम दिशा में
व्रत पर्व विवरण : त्रयोदशी श्राद्ध, मघा श्राद्ध, प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि
विशेष : त्रयोदशी
श्राद्ध पक्ष विशेष जानकारी
चतुर्दशी तिथि पर श्राद्ध वर्जित
- तिथि: 20 सितम्बर 2025, शनिवार
- इस दिन अकाल मृत्यु, दुर्घटना, अस्त्र-शस्त्र या अपमृत्यु से मरे पितरों का ही श्राद्ध किया जाता है।
- स्वाभाविक मृत्यु से मरे परिजनों का श्राद्ध इस दिन नहीं करना चाहिए।
- महाभारत, कूर्म पुराण, याज्ञवल्क्य स्मृति आदि ग्रंथों में इसका निषेध बताया गया है।
- चतुर्दशी को सामान्य पितरों का श्राद्ध करने से विवाद, अकाल मृत्यु, परिवार में संकट आदि का भय रहता है।
किनका श्राद्ध करें?
- उन पितरों का जिनकी मृत्यु अकाल, हत्या, आत्महत्या, दुर्घटना से हुई हो।
- जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात न हो और मृत्यु असमय हुई हो, उनका भी चतुर्दशी को श्राद्ध कर सकते हैं।
सर्व पितृ अमावस्या
तिथि: 21 सितम्बर 2025, रविवार
- इस दिन सभी पितरों का श्रद्धापूर्वक श्राद्ध और तर्पण करना चाहिए, विशेष रूप से जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है।
- श्रद्धा, तर्पण और मंत्र द्वारा पितर तृप्त होते हैं, चाहे वे किसी भी योनि में क्यों न हों।
- यदि श्राद्ध न कर सकें तो तांबे के लोटे में जल भरकर सूर्य को अर्घ्य दें और निम्न मंत्रों का जाप करें: मंत्र:
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
- “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधा देव्यै स्वाहा”
- सूर्य को अर्घ्य देते समय यह भावना करें कि: “मैं अपने पितरों को प्रणाम करता हूँ। वे मेरी भक्ति से तृप्त हों। वे परमात्म स्वरूप को प्राप्त करें और जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हों।”
श्राद्ध के नियम और सावधानियाँ
- पितृपक्ष में मांसाहार, मदिरा, तामसिक भोजन से परहेज करें।
- मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण रखें।
- काम, क्रोध, लोभ, मोह से बचें।
- भोजन सात्विक और शुद्ध बनाएं, क्योंकि उसका अंश पितरों को भी प्राप्त होता है।
- गाय को रोटी और गुड़, कुत्ते, बिल्ली, कौए आदि को आहार दें।
ज्योतिषीय मान्यता
- जिनके पितर अप्रसन्न होते हैं, उनकी ग्रहदशा शुभ होते हुए भी जीवन में कष्ट बना रहता है।
- श्राद्ध पक्ष में संयम, नियम और श्रद्धा के साथ कर्म करें, वरना पितरों की नाराज़गी से जीवन में बाधाएँ आ सकती हैं।