ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्रा
पंचांग विवरण
- विक्रम संवत: 2082
- शक संवत: 1947
- अयन: दक्षिणायन
- ऋतु: शरद ऋतु
- मास: आश्विन
- पक्ष: कृष्ण
- तिथि: पंचमी दोपहर 1:30 तक, तत्पश्चात षष्ठी
- नक्षत्र: भरणी सायं 4:19 तक, तत्पश्चात कृत्तिका
- योग: व्याघात संध्या 6:50 तक, तत्पश्चात हर्षण
- राहुकाल: सुबह 10:30 से दोपहर 12:00 तक
- सूर्योदय: प्रातः 5:51 बजे
- सूर्यास्त: संध्या 6:09 बजे
- दिशाशूल: पश्चिम दिशा में
- व्रत/पर्व: पंचमी का श्राद्ध
- विशेष: पंचमी
विशेष सुझाव
धन-धान्य की प्राप्ति हेतु – 14 सितम्बर (रविवार) को महालक्ष्मी जी की साधना, श्री सूक्त एवं कनकधारा स्तोत्र का विशेष पाठ करें। इससे सफलता के नये रास्ते खुलेंगे।
श्राद्ध में क्या करें और क्या न करें
- श्राद्ध गुप्त और एकान्त में करना चाहिए।
- पिण्डदान पर दुष्ट दृष्टि पड़ने से पितरों तक तर्पण नहीं पहुँचता।
- दूसरे की भूमि पर श्राद्ध न करें।
- जंगल, पर्वत, तीर्थ, देवमंदिर आदि पर स्वामित्व नहीं होता – वहां श्राद्ध कर सकते हैं।
- श्राद्ध में ब्राह्मण का होना अनिवार्य है।
- ब्राह्मण को निमंत्रण आवश्यक है।
- बिना ब्राह्मण के श्राद्ध करने पर पितर तृप्त नहीं होते और श्राप दे सकते हैं।
- पितृगण प्रसन्न होकर देते हैं:
- पुत्र, धन, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष आदि।
- तीर्थ में पहुँचने पर श्राद्ध, तर्पण, स्नान अवश्य करें।
- कृष्ण पक्ष शुक्ल पक्ष की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ है।
- पूर्वाह्न की अपेक्षा अपराह्ण काल उत्तम माना गया है।
- सायंकाल में श्राद्ध न करें – यह राक्षसी बेला होती है।
- चतुर्दशी को सामान्यत: श्राद्ध वर्जित है,
- केवल उन्हीं पितरों के लिए करें जो युद्ध में मारे गए हों।
- रात्रि में श्राद्ध करना निषिद्ध है।
- श्राद्ध का श्रेष्ठ समय – कुतुप काल (दिवस का आठवां भाग):
- इस समय दिया गया दान अक्षय होता है।
- कुतुप के प्रतीक: खड्गपात्र, कम्बल, चाँदी, कुश, तिल, गौ और दौहित्र।
- तीन पवित्र वस्तुएँ:
- दौहित्र (नाती), कुतुप काल, तिल
- तीन प्रशंसनीय बातें:
- बाह्य और आंतरिक शुद्धि
- क्रोध न करना
- जल्दबाजी से बचना