ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्रा
- विक्रम संवत: 2082
- शक संवत: 1947
- अयन: दक्षिणायन
- ऋतु: शरद
- मास: कार्तिक (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार: अश्विन)
- पक्ष: कृष्ण
- तिथि: प्रतिपदा प्रातः 7:28 तक, तत्पश्चात द्वितीया
- नक्षत्र: अश्विनी रात्रि 2:07 तक, तत्पश्चात भरणी
- योग: व्याघात प्रातः 8:52 तक, तत्पश्चात हर्षण
- राहुकाल: दोपहर 12:00 से 1:30 बजे तक
- सूर्योदय: प्रातः 6:10 बजे
- सूर्यास्त: संध्या 5:50 बजे
- दिशाशूल: उत्तर दिशा में
- व्रत/पर्व: प्रतिपदा एवं द्वितीया
कार्तिक दीपदान का महत्व
आज से प्रारंभ हुआ कार्तिक व्रत-स्नान कार्तिक मास में दीपदान को अत्यंत पुण्यदायक एवं मोक्षदायक माना गया है। पुराणों में इसके कई महात्म्य वर्णित हैं:
पद्मपुराण (उत्तरखण्ड, अध्याय 115): “हरिजागरणं प्रातःस्नानं तुलसिसेवनम्। उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके।।”
स्कन्दपुराण (वैष्णव खण्ड): “स्नानं च दीपदानं च तुलसीवनपालनम्… जीवन्मुक्तास्त एव हि।”
पद्मपुराण (अध्याय 121): “घृतेन दीपको यस्य… अश्वमेधेन तस्य किम्।”
जो व्यक्ति कार्तिक में घी या तिल के तेल से दीप जलाता है, उसे अश्वमेध यज्ञ जैसा फल प्राप्त होता है।
अग्निपुराण (अध्याय 200): “दीपदानात्परं नास्ति, न भूतं न भविष्यति।”
दीपदान से बढ़कर कोई व्रत नहीं है। स्कन्दपुराण में तुलादान के पुण्य की तुलना दीपदान से की गई है।
पितरों के लिए दीपदान
पद्मपुराण (अध्याय 123): “मनुष्य के पितर सदा यह अभिलाषा करते हैं कि उनके कुल में कोई ऐसा हो जो कार्तिक में दीपदान करके श्री केशव को संतुष्ट करे।”
पितरों के मार्गदर्शन हेतु: “तुला संस्थे… नराः कुर्युः पितृणां मार्गदर्शनम्।”
दीपदान कहाँ करें?
- मंदिर
- गौशाला
- वृक्ष के नीचे
- तुलसी के समक्ष
- नदी के तट पर
- चौराहे पर
- ब्राह्मण के घर
- अपने घर में
विशेष:
मंदिर, नदी, सड़क या दुर्गम स्थानों पर दीपदान से सर्वतोमुखी लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
नियम:
प्रति दिन दो दीपक अवश्य जलाएं —
- एक श्रीहरि नारायण के समक्ष
- दूसरा शिवलिंग के समक्ष