आज के दिन नहीं किया जाता है गाय के दूध से बने किसी भी खाद्य पदार्थ का सेवन
डॉ उमाशंकर मिश्रा,लखनऊ : सनातन परंपरा में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को बहुला चौथ या बहुला चतुर्थी कहा जाता है। यह व्रत इस वर्ष 25 अगस्त 2025 (सोमवार) को मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में बहुला चौथ का विशेष महत्व है। इस दिन माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र, आरोग्य और सुख-समृद्धि की कामना से यह व्रत रखती हैं। यह दिन भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय बहुला गाय को समर्पित है।

बहुला चौथ की पौराणिक कथा:
एक समय ब्रज में बहुला नामक गाय रहती थी, जिसकी धार्मिक महत्ता बहुत थी। एक दिन वह जंगल में चरने गई, तभी भगवान श्रीकृष्ण ने उसकी परीक्षा लेने हेतु सिंह (शेर) का रूप धारण किया और उसे पकड़ लिया। गाय ने विनम्रतापूर्वक कहा, “हे जंगल के राजा! मेरा एक नन्हा बछड़ा घर पर है जिसे मैं दूध पिलाने जा रही हूं। कृपया मुझे छोड़ दें। मैं दूध पिलाकर स्वयं वापस आ जाऊंगी।” उसकी सत्यता और निष्ठा से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण ने उसे आशीर्वाद दिया और वरदान दिया कि जो माताएं इस दिन व्रत करेंगी, उनके संतान की रक्षा सदा होगी।

व्रत विधि:
महिलाएं प्रातः स्नान के पश्चात पवित्रता के साथ भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के समक्ष व्रत का संकल्प लें।
धूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य सहित षोडशोपचार विधि से गणेशजी का पूजन करें।
दिनभर कम बोलने का प्रयास करें, विशेषकर चंद्रमा के उदय तक।
सायंकाल पुनः स्नान कर भगवान गणेश की पूजा करें।
रात्रि में चंद्रमा के उदय (8:37 बजे) के समय शंख में दूध, दूर्वा, सुपारी, गंध और अक्षत लेकर श्रीगणेश का पूजन करें और चंद्रमा को अर्घ्य दें।
फलदायकता:
इस व्रत से व्रती के सभी प्रकार के कष्ट, विघ्न और मानसिक संकट दूर होते हैं। यह व्रत संतान प्राप्ति और धन वृद्धि के लिए अत्यंत लाभकारी माना गया है।
कजरी तीज: माता पार्वती की उपासना का पर्व

भाद्रपद कृष्ण तृतीया को मनाई जाने वाली कजरी तीज का पर्व आज 12 अगस्त को विशेष रूप से मनाया जा रहा है। यह पर्व माता पार्वती को समर्पित है।
पर्व की परंपरा:
इस दिन महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती के मंदिरों में जाकर विधिवत पूजन करती हैं।
श्रीकृष्ण को फूल-पत्तों से सजे झूले में झुलाने की परंपरा है।
नवविवाहिताएं इस दिन अपने ससुराल से मायके आती हैं और जीवन में तीन बातों का त्याग करने का संकल्प लेती हैं— पति से छल, झूठ और दुर्व्यवहार तथा दूसरों की निंदा।
पूजा विधि:
इस दिन 16 गांठ वाले धागे में मिट्टी की गौरी प्रतिमा स्थापित की जाती है और उसे विधिपूर्वक पूजा जाता है।
माता की सवारी निकालने की परंपरा भी कई क्षेत्रों में प्रचलित है।
मंगलवारी संकष्ट चतुर्थी: जप, तप और ध्यान का विशेष योग

आज मंगलवार को पड़ने वाली चतुर्थी को ‘मंगलवारी संकष्ट चतुर्थी’ कहा जाता है, जो विशेष पुण्यदायिनी मानी जाती है।
इस वर्ष यह व्रत 12 अगस्त सुबह 9:51 से लेकर 13 अगस्त सुबह 7:56 तक रहेगा।
महत्व:
मंगलवारी चतुर्थी पर किया गया जप, तप, यज्ञ और मौन साधना सूर्यग्रहण के समान फल देने वाला होता है।
यह दिन विशेषतः संकल्प सिद्धि और आत्मिक शांति के लिए उपयुक्त है।
संकट निवारण मंत्र (शिवपुराण से):
इस दिन प्रातःकाल निम्न छह नामों का जप कर गणेशजी को प्रणाम करें:
- ॐ सुमुखाय नमः
- ॐ दुर्मुखाय नमः
- ॐ मोदाय नमः
- ॐ प्रमोदाय नमः
- ॐ अविघ्नाय नमः
- ॐ विघ्नकरत्र्यै नमः
यह प्रयोग जीवन से बार-बार आने वाले कष्टों और मानसिक उलझनों को शांत करने वाला माना गया है।