भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है श्रावण मास के सोमवार का व्रत
डॉक्टर उमाशंकर मिश्रा,लखनऊ : सावन का आज दूसरा सोमवार है और इस दिन कैलाश पर शिववास होगा. सावन मास स्वयं में शिवजी को समर्पित है और प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों को विशेष कृपा प्राप्त होती है. सावन का दूसरा सोमवार विशेष होता है क्योंकि इससे पहले का पहला सोमवार उद्घाटनात्मक प्रभाव रखता है और दूसरा सोमवार साधना की गहराई को बढ़ाता है. सावन के सभी सोमवार का व्रत करने से भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त होती है और सभी परेशानियों व कष्टों से मुक्ति मिलती है. सावन के दूसरे सोमवार का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि आज के दिन कई शुभ योगों बन रहे है, जिससे भगवान शिव की पूजा का फल कई गुना अधिक हो जाता है. आइए जानते हैं सावन के दूसरे सोमवार का महत्व, पूजा विधि, पूजन मुहूर्त…
श्रावण मास एवं सोमवार व्रत का महत्व
श्रावण मास के सोमवार का व्रत भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। यह व्रत सभी स्त्री, पुरुष, वृद्ध, युवा और बच्चे कर सकते हैं। इस दिन विधिपूर्वक शिवपूजन, उपवास, रुद्राभिषेक और रात्रि जागरण करने से अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है। व्रत का पारायण: अगले दिन ब्राह्मण को वस्त्र, दक्षिणा, क्षीर (दूध आदि) सहित भोजन कराकर व्रत का समापन करें।
श्रावण सोमवार पूजन की विधि
प्रारंभिक तैयारी
- सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें।
- स्वच्छ वस्त्र धारण करें (यदि संभव हो तो बिना सिले वस्त्र पहनें)।
- पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर पूजा करें।
- दर्भासन या स्वच्छ आसन का प्रयोग करें।
व्रत का संकल्प लें
- शिवलिंग को गंगाजल, दूध, दही, घृत, मधु, शहद, बेलपत्र, धतूरा, भांग आदि अर्पण करें।
- फल व मिठाई अर्पित करें।
- दिनभर ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करें।
- रात्रि में जागरण करें, शिव पुराण, शिव चालीसा या महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।
पूजन सामग्री
- शिवलिंग या शिव प्रतिमा
- चन्दन, गुलाल, अबीर
- बेलपत्र, पुष्प, धतूरा, आक
- जल, दूध, दही, घी, शहद, शक्कर (पंचामृत)
- दीपक, धूप, अगरबत्ती, कलश, शंख, घंटा
- चावल, फल, मिठाई, पान, सुपारी, जनेऊ
- आसन, आरती की थाली
पूजन के विशेष नियम
- बिल्वपत्र का चिकना भाग शिवलिंग पर अर्पित करें (खंडित न हो)।
- शिवलिंग की संपूर्ण परिक्रमा न करें, अर्ध-परिक्रमा करें।
- चंपा के पुष्प का प्रयोग वर्जित है।
- प्रसाद का अपमान न करें।
- त्रोयोदशी-चतुर्दशी के संगम में जल अर्पण विशेष फलदायक है।
पूजन की प्रक्रिया
शिखा बंधन मंत्र:
“ह्रीं उर्ध्वकेशी विरुपाक्षी…”
आचमन मंत्र:
ॐ केशवाय नमः
ॐ नारायणाय नमः
ॐ माधवाय नमः
(तीन बार जल पिएं)
फिर “ॐ गोविन्दाय नमः” बोलकर हाथ धोएं।
इसके बाद जल शरीर के प्रमुख अंगों पर लगाएं।
पवित्रीकरण मंत्र:
“ॐ अपवित्रः पवित्रो वा…”
(जल का छिड़काव करें)
न्यास मंत्र:
(जैसे – “ह्रीं नं पादाभ्याम नमः” – दोनों पांव पर हाथ रखें…)
पूरे शरीर पर क्रमशः स्पर्श करते हुए मंत्र उच्चारण करें।
गणेश पूजन
गणेश ध्यान मंत्र:
“सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णकः…”
प्रार्थना मंत्र:
“शुक्लाम्बरधरं देवं…”
“वक्रतुंड महाकाय…”
(सभी कार्यों के निर्विघ्न होने हेतु)
संकल्प मंत्र
(दाहिने हाथ में जल, पुष्प, अक्षत लेकर संकल्प लें – स्थान, तिथि, नाम, गोत्र आदि जोड़ें):
“ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य…”
नोट:
- “—— नगरे” स्थान पर अपने नगर का नाम
- “—— ग्रामे” स्थान पर अपने गांव का नाम
- “— गौत्रः” पर अपना गोत्र
- “— अमुक शर्मा / गुप्ता” पर अपना नाम जोड़ें
वरुण पूजन
मंत्र:
“अपां पतये वरुणाय नमः”
(कलश में चन्दन व पुष्प डालें, जल से पूजन करें)
द्विग्रक्षण (शुद्धि) मंत्र
“यादातर संस्थितं भूतं स्थानमाश्रित्य सर्वतः…”
(यह मंत्र बोलते हुए अक्षत को चारों दिशाओं में छिड़कें)
उपसंहार
श्रावण सोमवार का व्रत एवं पूजन भक्तों को अद्भुत मानसिक, आध्यात्मिक और सांसारिक फल प्रदान करता है। श्रद्धा, विधिपूर्वक उपवास और मंत्रोच्चारण के साथ भगवान शिव की आराधना करने से समस्त संकट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।