गंगा दशहरा पर गंगा-स्नान, गंगा पूजन, दान, और गंगा स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत पुण्यदायक माना गया है
लखनऊ,संवाददाता : आज गंगा दशहरा है — हिंदू धर्म और सनातन संस्कृति का एक अत्यंत पावन और पुण्यदायी पर्व, जिसे मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन न केवल धार्मिक, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्रा के अनुसार, गंगा जी की उत्पत्ति श्रीहरि विष्णु के वामन अवतार के समय हुई। जब वामन रूप में भगवान ने ब्रह्मांड को अपने पगों से नापा, तो उनके चरणों को ब्रह्मा जी ने पवित्र जल से धोया। वही चरणोदक आगे चलकर गंगा जल बना, जिसे ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल में संजोकर रखा। राजा भगीरथ ने अपने पितरों की मुक्ति के लिए गंगा को धरती पर लाने हेतु कठोर तप किया।
ब्रह्मा ने गंगा को पृथ्वी पर भेजने की अनुमति तो दे दी, लेकिन उनके तीव्र वेग को धारण करने के लिए भगवान शिव की आवश्यकता पड़ी। शिवजी ने अपनी जटाओं में गंगा के वेग को समाहित कर, एक जटा से उन्हें धरती पर मुक्त किया। गंगा जी का अवतरण ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी तिथि, हस्त नक्षत्र, बुधवार, आनंद योग, व्यतीपात योग, वृष राशि के सूर्य और कन्या राशि के चंद्रमा — इन दस विशेष योगों में हुआ। इन्हीं दस योगों से युक्त दिन को दशहरा कहा गया, जो दस प्रकार के पापों को नष्ट करता है।
दस पाप और उनका हरण
- तीन कायिक पाप: चोरी, हिंसा, पर-स्त्री गमन
- चार वाचिक पाप: झूठ बोलना, चुगली करना, कटु वचन, निरर्थक बातें
- तीन मानसिक पाप: परधन हरण की इच्छा, दुर्भावना, नास्तिकता
गंगा पूजन और स्नान का महत्त्व
गंगा दशहरा पर गंगा-स्नान, गंगा पूजन, दान, और गंगा स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत पुण्यदायक माना गया है। मान्यता है कि गंगा का स्मरण करने मात्र से पाप नष्ट होते हैं, दर्शन से कल्याण होता है और स्नान करने से सात पीढ़ियों तक मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्लोक:
गंगे च यमुने चैव, गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरि, जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु॥
यह श्लोक नदियों को स्मरण कर उनके जल को पवित्रता और आध्यात्मिक उन्नति का स्रोत बताता है।