विष्णु-लक्ष्मी और शनि देव की पूजा में करें काले तिल का इस्तेमाल, हनुमान जी के सामने जलाएं दीपक
डॉ उमाशंकर मिश्र,लखनऊ : भगवान श्री कृष्ण से युधिष्ठिर ने माघ मास के शुक्लपक्ष में पड़ने वाली एकादशी के बारे में पूछा और उसकी विधि तथा पूजन का विवरण जानने की इच्छा जताई। भगवान श्री कृष्ण ने उत्तर देते हुए बताया कि माघ शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका नाम ‘जया’ है। यह एकादशी सब पापों को हरने वाली और पुण्य प्रदान करने वाली है। इस दिन का व्रत करने से ब्रह्महत्या जैसे गंभीर पाप और पिशाचत्व का नाश होता है। इस व्रत को करने वाला व्यक्ति कभी प्रेतयोनि में नहीं जाता। स्वर्गलोक में देवराज इन्द्र के राज्य में एक समय अप्सराओं और गन्धर्वों के साथ एक नृत्य का आयोजन किया गया था। इस आयोजन में पुष्पदन्त और चित्रसेन गन्धर्वों के साथ उनके पुत्र और पतिव्रता गन्धर्व दंपति ने भी हिस्सा लिया। पुष्पवन्ती और माल्यवान का एक दूसरे के प्रति गहरा आकर्षण था, लेकिन उनका गान विफल हो गया। इस पर इन्द्र कुपित हो गए और उन्होंने दोनों को शाप दे दिया कि वे पिशाच बनकर दुख भोगेंगे। माल्यवान और पुष्पवन्ती ने हिमालय पर्वत में जाकर पिशाचत्व का भयंकर दुख भोगा। उन्होंने माघ शुक्लपक्ष की ‘जया’ एकादशी का व्रत किया, जिसमें उन्होंने आहार त्याग किया, जल तक ग्रहण नहीं किया और किसी जीव की हिंसा भी नहीं की। भगवान विष्णु की कृपा से उनका पिशाचत्व दूर हो गया और वे फिर से अपनी सुंदर रूप में लौट आए। माल्यवान और पुष्पवन्ती अपने पहले रूप में लौटकर स्वर्गलोक में गए और देवराज इन्द्र के सामने पहुंचे। उन्हें देखकर इन्द्र ने विस्मय व्यक्त किया और पूछा कि किस पुण्य के प्रभाव से उनका पिशाचत्व दूर हुआ। माल्यवान ने भगवान श्री कृष्ण की कृपा और ‘जया’ एकादशी के व्रत को ही इसका कारण बताया।
भगवान श्री कृष्ण का उपदेश:
भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि ‘जया’ एकादशी व्रत से ब्रह्महत्या के पाप का नाश होता है और यह व्रत सारे दान और यज्ञों के बराबर फल देने वाला है। उन्होंने कहा कि इस व्रत के प्रभाव से अग्निष्टोम यज्ञ के समान पुण्य मिलता है। इस एकादशी का नाम जया, अजा और भीष्म है। शनिवार और एकादशी का विशेष योग होने के कारण इस दिन विष्णु-लक्ष्मी के साथ-साथ शनि देव की भी विशेष पूजा-पाठ करना बहुत फलकारी माना जाता है। माघ शुक्ल एकादशी पर व्रत-उपवास करने से यज्ञ के समान पुण्य मिलता है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन तिल का इस्तेमाल करने की परंपरा भी है।
एकादशी व्रत की विधि
• एकादशी पर स्नान करने के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें और ऊँ सूर्याय नम: मंत्र का जाप करें। फिर घर के मंदिर में पहले गणेश जी की पूजा करें। गणेश जी को जल, दूध, दूर्वा, फूल, पंचामृत चढ़ाकर तिल-गुड़ के लड्डू का भोग लगाएं और दीपक जलाकर आरती करें। इसके बाद विष्णु जी के सामने व्रत और पूजा करने का संकल्प लें।
• भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की मूर्तियों का पूजन करें। जल अर्पित करने के बाद दक्षिणावर्ती शंख में केसर मिश्रित दूध से भगवान का अभिषेक करें। फिर से जल अर्पित करें।
• भगवान विष्णु को लाल और पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें, उन्हें हार-फूल पहनाएं, सुंदर श्रृंगार करें और तिलक लगाएं। इत्र और अन्य पूजन सामग्री चढ़ाएं।
• पूजा में तिल चढ़ाएं और तुलसी के साथ मिठाई का भोग अर्पित करें। इसके बाद ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें और आरती करें। पूजा के अंत में भगवान से भूल-चूक के लिए क्षमा मांगें। फिर प्रसाद वितरित करें।
शनिवार को शनि पूजा
आज (शनिवार) शनि देव की भी विशेष पूजा करें। शनि देव की प्रतिमा पर सरसों का तेल चढ़ाएं। नीले फूल, काले वस्त्र, काले तिल और तिल के लड्डू अर्पित करें। शनि मंत्र “ऊँ शं शनैश्चराय नम:” का जाप करें और तिल के तेल का दीपक जलाएं। पूजा के बाद काले तिल, तेल और काले कंबल का दान करें। साथ ही हनुमान जी के सामने दीपक जलाकर हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ भी करना चाहिए।
एकादशी व्रत करते समय ध्यान रखने योग्य बातें
• जो लोग एकादशी व्रत करना चाहते हैं, उन्हें सुबह विष्णु पूजा में व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए।
• दिनभर निराहार रहकर अन्न का त्याग करें। अगर कोई व्यक्ति भूखा नहीं रह सकता, तो वह फलाहार कर सकता है और दूध या फलों का रस पी सकता है।
• भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें और विष्णु जी की कथाएं पढ़ें या सुनें।
• शाम को भी विष्णु जी की पूजा करें और द्वादशी पर सुबह जल्दी उठकर पूजा करने के बाद जरूरतमंदों को भोजन कराएं।
व्रत से होने वाले स्वास्थ्य लाभ:
व्रत के दौरान अन्न का त्याग करने से पाचन तंत्र को आराम मिलता है, जिससे गैस, एसिडिटी और अपच जैसी समस्याएं कम होती हैं। हल्का और संतुलित आहार लेने से पाचन तंत्र पर कोई दबाव नहीं पड़ता। व्रत के दौरान पर्याप्त पानी पीना और फलों का सेवन करना चाहिए ताकि शरीर को आवश्यक ऊर्जा मिलती रहे।