पूर्णिमा तिथि आज दिनभर एवं रात्रि 9:12 बजे तक रहेगी
डॉ. उमाशंकर मिश्रा,लखनऊ : हिंदू पंचांग के अनुसार आज वैशाख मास की पूर्णिमा है, जिसे बैसाखी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह तिथि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने हेतु अत्यंत पुण्यदायी मानी जाती है। पूर्णिमा तिथि आज दिनभर एवं रात्रि 9:12 बजे तक रहेगी। इसी अवधि में स्नान, ध्यान, दान और पूजन के समस्त धार्मिक कार्यों के लिए उत्तम मुहूर्त माना गया है।
पूर्णिमा व्रत का महत्व:
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है और विधिपूर्वक पूजन करता है, उसे जीवन के समस्त कष्टों से मुक्ति और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है यह तिथि सत्यनारायण व्रत कथा के आयोजन के लिए भी अत्यंत शुभ मानी जाती है।
वैशाख पूर्णिमा पर करें ये शुभ कार्य:
प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें।
यदि संभव हो, तो गंगा, यमुना या किसी तीर्थ सरोवर में स्नान करें।
सूर्य देव को तांबे के पात्र में जल, लाल पुष्प और अक्षत डालकर अर्घ्य दें।
पीले या लाल वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।
घी का दीपक जलाएं, धूप, पुष्प, नैवेद्य अर्पित करें।
विष्णु सहस्रनाम, लक्ष्मी स्तोत्र या सत्यनारायण कथा का पाठ करें। जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, जूते, छाते व शीतल पेय का दान करें।
पूजा विधि संक्षेप में:
- प्रातःकाल स्नान कर सूर्य को अर्घ्य दें – मंत्र: ॐ घृणिः सूर्याय नमः
- लकड़ी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछाएं, विष्णु-लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें।
- धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य सहित पूजा करें।
- पूर्णिमा व्रत कथा का श्रवण/पाठ करें।
- संकल्प के अनुसार व्रत का पालन करें – एक समय फलाहार या अन्न ग्रहण करें।
वैशाखी पूर्णिमा व्रत कथा
प्राचीन काल की बात है। एक नगर में धनेश्वर नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुशीला के साथ निवास करता था। उनके जीवन में किसी वस्तु की कमी नहीं थी—धन, वैभव और सुख-सुविधाएं सबकुछ था—परंतु दोनों दंपत्ति अत्यंत दुखी रहते थे, क्योंकि उनके जीवन में संतान सुख नहीं था। एक दिन, उस नगर में एक तेजस्वी साधु पधारे। वे प्रत्येक घर में जाकर भिक्षा मांगते थे, परंतु आश्चर्य की बात यह थी कि वे धनेश्वर के घर कभी भिक्षा लेने नहीं गए। यह देखकर धनेश्वर और सुशीला को अत्यंत दुख हुआ। अंततः एक दिन उन्होंने साधु से विनम्रतापूर्वक पूछा, “महाराज! आप सभी घरों में भिक्षा ग्रहण करते हैं, परंतु हमारे द्वार से क्यों नहीं लेते? क्या हमसे कोई भूल हुई है?” साधु ने शांत स्वर में उत्तर दिया, “तुम निःसंतान हो। मैं तुम्हारे घर का अन्न स्वीकार कर पतित अन्न का भागी नहीं बन सकता। यह धर्म के विरुद्ध है।” यह सुनकर ब्राह्मण दंपत्ति अत्यंत दुखी हो गए, और धनेश्वर ने साधु से संतान प्राप्ति का उपाय पूछा। साधु ने कहा, “हे ब्राह्मण! यदि तुम सोलह दिन तक माँ चंडी की उपासना श्रद्धा पूर्वक करो, तो तुम्हें संतान की प्राप्ति होगी।” धनेश्वर और सुशीला ने पूरे विधि-विधान से सोलह दिन तक माँ चंडी की पूजा की। उनकी तपस्या और श्रद्धा से प्रसन्न होकर माँ काली प्रकट हुईं और उन्होंने आशीर्वाद दिया—“हे सुशीला! तुम्हें एक पुत्र की प्राप्ति होगी।”
माँ काली ने यह भी कहा,
“तुम दोनों पूर्णिमा व्रत का नियमपूर्वक पालन करना। प्रत्येक पूर्णिमा को दीपक जलाना और प्रत्येक महीने दीपकों की संख्या बढ़ाना। जब यह संख्या 32 दीपक तक पहुँचे, तब यह व्रत पूर्ण होगा।” दंपत्ति ने माँ के बताए अनुसार पूर्णिमा व्रत करना प्रारंभ किया। समय आने पर सुशीला गर्भवती हुई और कुछ माह बाद एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम रखा गया देवदास। इस प्रकार पूर्णिमा व्रत के प्रभाव से उस निःसंतान दंपत्ति को संतान सुख प्राप्त हुआ और उनके जीवन का अंधकार दूर होकर घर में आनंद का प्रकाश फैल गया ।