फिर भी बच गई जान, जिसके रक्षक भगवान उसका बाल भी बांका न हो
अमेठीः “जब तुम्हें मंज़ूर न था, मेरा दुनिया में आना तो मेरे जिस्म को सांसों की सजा क्यों दी” ये चंद शब्द उस तीन दिन की मासूम बेटी के लिए जिसकी अविवाहित कलियुगी मां ने घरवालों के साथ मिलकर उसे बोरे में भरकर खाईं में फेंक दिया। जंगली जानवरों के बीच मासूम सुरक्षित रही।
उधर मासूम को रोता देख ग्रामीणों ने शोर मचाकर उसकी माँ और घरवालों को दौड़ा लिया। पकड़े गए लोगों में मासूम की माँ के साथ उसके माता-पिता थे। जिन्होंने बताया लोकलाज के भय से ऐसा कृत्य करने पर मजबूर हो गए। पुलिस के हस्तक्षेप के बाद महिला और उसके घरवालों ने दोबारा मासूम को अपना लिया, लेकिन इसकी क्या गारंटी कि मासूम इन भेड़ियों के साथ सुरक्षित रहेगी।