घौखरिया गांव की मीना चक्रवर्ती का वीडियो वायरल

रामनगर (बाराबंकी), संवाददाता : कभी मंदिरों में पूजी जाने वाली किताबें आज सियासत और समाज के बीच ‘सड़कछाप बहस’ का हिस्सा बन चुकी हैं। ऐसा ही नजारा सामने आया है बाराबंकी जनपद की रामनगर कोतवाली क्षेत्र के ग्राम घौखरिया से, जहां आरोप है कि मीना चक्रवर्ती नामक महिला ने खुलेआम मनुस्मृति को पैरों तले रौंद दिया। जोकि सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल है, और वायरल का मतलब अब सिर्फ मोबाइल की मेहरबानी नहीं, बल्कि समाज की नब्ज भी है। सवाल उठ रहा है कि आखिर मनुस्मृति जैसे धार्मिक ग्रंथ को पैरों से कुचलने का अधिकार किसने दिया और हिम्मत कहां से आई।
पुलिस कह रही ‘जांच जारी’, जनता पूछ रही ‘जवाब कब
इस मामले पर जब संवाददाता ने पुलिस क्षेत्राधिकारी गरिमा पंत से बात की तो उन्होंने कहा कि वीडियो की जांच चल रही है। यह कब का है और इसमें एडिटिंग तो नहीं की गई, सब तथ्यों की पुष्टि के बाद ही कार्रवाई होगी। यानी पुलिस वही कर रही है, जो आजकल हर मामले में करती है—पहले देखो, फिर सोचो और बाद में बोलो।
लोकतंत्र के नाम सनातन परंपराओं का अपमान कहां तक जायज
क्या किताबों का सम्मान अब केवल लाइब्रेरी की शेल्फ तक सीमित रह गया है। क्या लोकतंत्र के नाम पर किसी को भी यह हक है कि वह सनातन परंपराओं को सड़क पर पटक दे। या फिर यह सब सोशल मीडिया की ‘ट्रेंडिंग क्रांति’ है, जो हर दिन किसी न किसी ग्रंथ, मूर्ति या प्रतीक को अपने शिकार की तरह ढूंढ लेती है।
विचारों को कौन कुचल पाया
कहावत है—पुस्तकें कभी मरती नहीं, उन्हें जितना दबाओगी, उतना ही वे विचार बनकर लौटेंगी। मनुस्मृति भी अपवाद नहीं।
अगर कोई महिला उसे पैरों तले कुचल रही है, तो असल में वह सिर्फ कागज पर पैर रख रही है। विचारों को कौन कुचल पाया है भला?