पूजा पाल का अभिनव आविष्कार ‘भूसा-धूल पृथक्करण यंत्र’ पहुंचा जापान

बाराबंकी,संवाददाता : सीमित संसाधनों और ग्रामीण परिवेश में पली एक होनहार छात्रा ने विज्ञान के क्षेत्र में ऐसी उड़ान भरी कि उसका नाम अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर लिया जा रहा है। हम बात कर रहे हैं बाराबंकी जनपद की छात्रा पूजा पाल की, जिन्होंने ‘भूसा-धूल पृथक्करण यंत्र’ तैयार कर न केवल देश में बल्कि विदेश में भी अपनी वैज्ञानिक सोच का लोहा मनवाया। हाल ही में उन्होंने जापान में आयोजित ग्लोबल साइंस एग्जिबिशन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। राजकीय बालिका इंटर कॉलेज में आयोजित इंस्पायर अवॉर्ड मॉडल प्रदर्शनी में पूजा की उपस्थिति ने छात्रों को नई दिशा दी। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार शोभित शुक्ला ने पूजा से विशेष बातचीत की। प्रस्तुत हैं इंटरव्यू के प्रमुख अंश:
सवाल: पूजा, आपके इस यंत्र की प्रेरणा कैसे मिली?
उत्तर: हमारे स्कूल के समीप एक खेत में थ्रेसर मशीन से उड़ती धूल कक्षा में पहुंच रही थी, जिससे कई बच्चों को सांस लेने में दिक्कत हुई। मैंने यह बात अपने विज्ञान शिक्षक राजीव श्रीवास्तव सर से साझा की। उन्होंने इस पर गहन विचार कर मुझे इस विषय पर काम करने को प्रेरित किया। यहीं से इस यंत्र का विचार जन्मा।
सवाल: पूजा, आपके इस यंत्र की प्रेरणा कैसे मिली?
उत्तर: हमारे स्कूल के समीप एक खेत में थ्रेसर मशीन से उड़ती धूल कक्षा में पहुंच रही थी, जिससे कई बच्चों को सांस लेने में दिक्कत हुई। मैंने यह बात अपने विज्ञान शिक्षक राजीव श्रीवास्तव सर से साझा की। उन्होंने इस पर गहन विचार कर मुझे इस विषय पर काम करने को प्रेरित किया। यहीं से इस यंत्र का विचार जन्मा।
सवाल: जब जापान से बुलावा आया, तो आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी?
उत्तर: मुझे यकीन ही नहीं हुआ। लगा कि कोई सपना देख रही हूं। जब नाम की घोषणा हुई, तो मेरी आंखें भर आईं। यह मेरे जीवन का सबसे गौरवपूर्ण क्षण था।
सवाल: जापान यात्रा के दौरान किन बातों ने आपको सबसे ज्यादा प्रभावित किया?
उत्तर: वहां की शिक्षा प्रणाली बेहद प्रभावशाली है। बच्चों को शुरू से ही प्रैक्टिकल ज्ञान दिया जाता है। अनुशासन, साफ-सफाई, तकनीकी विकास — सब कुछ प्रेरणादायक था। वहां विज्ञान सिर्फ विषय नहीं, जीवनशैली है।
सवाल: क्या आपने कभी सोचा था कि गांव से निकलकर विदेश जाएंगी?
उत्तर: नहीं, कभी नहीं। मैं तो लखनऊ भी नहीं गई थी। लेकिन मेरे शिक्षक और माता-पिता ने मुझ पर जो भरोसा जताया, उसी ने मुझे इस ऊंचाई तक पहुंचाया। ट्रेन का सफर और फिर हवाई जहाज का अनुभव मेरे लिए अविस्मरणीय रहा।
सवाल: जापान यात्रा में किस प्रकार की चुनौतियां सामने आईं?
उत्तर: भाषा और भोजन सबसे बड़ी चुनौतियां थीं। मैं पूरी तरह शाकाहारी हूं, जबकि वहां मांसाहार प्रमुख है। संवाद में भी दिक्कतें आईं, लेकिन मैंने इन बाधाओं को अपने लक्ष्य के बीच नहीं आने दिया।
सवाल: क्या संसाधनों की कमी ने कभी आपको हतोत्साहित किया?
उत्तर: हमारा परिवार बेहद सामान्य है। न पक्के मकान की सुविधा थी, न ही घर में पानी या बिजली। लेकिन मां-पापा की मेहनत, सरकारी किताबें और राजीव सर जैसे मार्गदर्शक मेरे सबसे बड़े संसाधन रहे। कठिनाइयां थीं, पर हौसला उससे कहीं बड़ा था।
सवाल: क्या आपको लगता है कि विज्ञान में लड़कियों की भागीदारी बढ़ रही है?
उत्तर: बिल्कुल। अब विज्ञान ही नहीं, हर क्षेत्र में लड़कियाँ आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रही हैं। जापान जाने वाले भारत के 54 बच्चों में भी लड़कियों की भागीदारी मजबूत थी। अब बेटियाँ किसी भी मोर्चे पर पीछे नहीं हैं।
सवाल: भविष्य में आप किस क्षेत्र में शोध करना चाहेंगी?
उत्तर: मैं चाहती हूं कि विज्ञान का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे। खासतौर पर ऐसे नवाचार करना चाहती हूं जो गरीब और ग्रामीण समाज को बेहतर जीवन देने में मदद करें — जैसे स्वरोजगार, स्वच्छता, और सुलभ तकनीकी समाधान।
सवाल: क्या सरकार से कुछ मदद मिली?
उत्तर: हाल ही में राज्य मंत्री सतीश चंद्र शर्मा जी हमारे घर आए। हमारी स्थिति देखकर उन्होंने तुरंत बिजली कनेक्शन का आदेश दिया। अब पहली बार हमारे घर में उजाला हुआ है। यह मेरे लिए विज्ञान से भी बड़ा तोहफा है।
यह केवल विज्ञान नहीं, साहस और संघर्ष की कहानी है

पूजा पाल की सफलता केवल एक वैज्ञानिक परियोजना की नहीं, बल्कि जिद, जुझारूपन और जमीनी हकीकत से उठकर आसमान छूने की मिसाल है। यह प्रेरक गाथा उन सभी बच्चों के लिए है जो कम संसाधनों में भी बड़े सपने देखते हैं। यह उस भारत की तस्वीर है जो तकनीक से नहीं, त्याग और तप से तरक्की करता है। और उस बेटी की, जो मिट्टी से उठकर विज्ञान के क्षितिज पर सितारा बन गई।