अब तक नहीं हो पाई है जिला अस्पताल में किसी भी ह्रदय रोग चिकित्सक की तैनाती
बाराबंकी,संवाददाता : जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मात्र खानापूर्ति का जरिया बनकर रह गए हैं। डॉक्टरों की भारी कमी, दवाओं का अभाव और बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता के कारण आमजन को इलाज के लिए जिला मुख्यालय से लेकर लखनऊ तक का चक्कर काटना पड़ रहा है। भाजपा सरकार का दूसरा टर्म भी बीतने को है। लेकिन अब तक जिला अस्पताल में ह्रदय रोग चिकित्सक की तैनाती नहीं हो पाई है।
डॉक्टर हैं नदारद, स्टाफ है नाम मात्र का
रामनगर, देवा, सूरतगंज, त्रिवेदीगंज, और हैदरगढ़ समेत कई ब्लॉकों में मौजूद सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की संख्या स्वीकृत पदों के मुकाबले बेहद कम है। कहीं-कहीं तो वर्षों से चिकित्सकों के पद खाली पड़े हैं। कई केंद्रों पर लैब टेक्नीशियन और नर्सिंग स्टाफ भी नहीं है, जिससे छोटे से छोटे परीक्षण के लिए भी मरीजों को निजी लैब का सहारा लेना पड़ता है।
दवाओं की किल्लत, गंभीर मरीज सीधे लखनऊ रेफर
जिला अस्पताल में भी स्थिति खास बेहतर नहीं है। दवाओं की नियमित आपूर्ति न होने के कारण मरीजों को बाजार से महंगी दवाएं खरीदनी पड़ती हैं। वहीं मरीजों की मानें तो प्राथमिक उपचार के बाद गंभीर अवस्था में मरीजों को बिना समुचित इलाज के लखनऊ रेफर कर दिया जाता है।
जनप्रतिनिधियों की अनदेखी
स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर जनता में गहरा आक्रोश है, लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधि इस विषय पर मौन हैं। विकास कार्यों की चर्चा तो होती है, लेकिन गांवों और कस्बों के अस्पतालों की बदहाली पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
प्रशासनिक चुप्पी
मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) कार्यालय में शिकायतें तो दर्ज होती हैं, लेकिन ज़मीनी कार्रवाई नगण्य है। स्वास्थ्य विभाग की मासिक समीक्षा बैठकों में अक्सर समस्याएं दर्ज होती हैं लेकिन क्रियान्वयन के स्तर पर सुस्ती बनी रहती है।
जनता की मांग: स्वास्थ्य हो प्राथमिकता
ग्रामीणों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पंचायत प्रतिनिधियों की मांग है कि स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिकता पर लिया जाए। खाली पड़े पदों पर त्वरित नियुक्ति, नियमित दवा आपूर्ति, और अस्पतालों में मूलभूत सुविधाओं की बहाली से ही जनपद की स्थिति सुधर सकती है।