अब डिजिटल युग की ओर उम्मीदों की सड़क

शोभित शुक्ला (बाराबंकी),संवाददाता : बाराबंकी-बहराइच राष्ट्रीय राजमार्ग पर सरयू नदी पर बना संजय सेतु और उससे जुड़ा हाईवे, अब दोनों ही अपनी उम्र और उपेक्षा से कराह रहे हैं। जहां संजय सेतु की दरारें सुरक्षा पर सवाल खड़े कर रही हैं, वहीं हाईवे पर बढ़ती दुर्घटनाएं और निर्माण कार्य में देरी लोगों के लिए लगातार खतरा बन चुकी हैं। अब सरकार ने डिजिटल हाईवे और नए पुल की सौगात का वादा तो किया है, लेकिन काम कब शुरू होगा — यह बड़ा सवाल है।
जब पुल थरथराए, जनता कांप उठी
1984 में जिस संजय सेतु को विकास की रीढ़ माना गया था, अब वही पुल लोड के नीचे हांफ रहा है। पिछले कुछ महीनों में पुल के पांच से ज्यादा जोड़ टूट चुके हैं। सड़क की सतह में दरारें, ढीली हो चुकी रेलिंग, और तेज़ ट्रैफिक के दौरान लोहे के कंपन की आवाज़ें इस बात का संकेत हैं कि अब यह पुल महज एक ‘जुड़ा हुआ खतरा’ बन चुका है।
मरम्मत या मखौल?
स्थानीय लोगों का कहना है कि हर बार मरम्मत की खानापूरी होती है, न कि ठोस कार्य। मिथिलेश, कमलेश और अन्य ग्रामीणों ने बताया कि पुल की मरम्मत अब पंचायत के नलकूप जैसे दिखने लगी है — दो महीने टिके तो गिनती में आए।
हादसों की हदें पार
केवल पुल ही नहीं, बल्कि इससे जुड़ा बाराबंकी-बहराइच हाईवे भी मौत का सफर बनता जा रहा है। हाल ही के हादसों में ट्रेलर से कुचले गए दोपहिया वाहन, कार-ट्रक भिड़ंत में चार मौतें और डिवाइडर से टकराती कारें… ये संकेत हैं कि यह मार्ग न तो सुरक्षित है, न ही व्यवस्थित। दुर्घटनाओं का बड़ा कारण – तेज़ रफ्तार, दिशा सूचक चिन्हों की कमी और भीड़भाड़ वाली लेनें।
इतिहास की दीवारों पर खिंची दरारें
09 अप्रैल 1981 को तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह द्वारा रखी गई नींव का सपना आज दरकता दिख रहा है। 2018 में डीसीएम के नदी में गिरने से 22 लोगों की मौत और 2021 में महज 6 महीने में तीन बार टूट चुके जोड़ बताते हैं कि ये महज़ पुल नहीं, प्रशासन की समझ का इम्तिहान है।
60 गुना ट्रैफिक, 2 लेन का दम
दो लेन का संजय सेतु अब फोर लेन हाईवे के ट्रैफिक का बोझ उठा रहा है। इंडियन रोड कांग्रेस के अनुसार, जिस रफ्तार से इस क्षेत्र में ट्रैफिक बढ़ा है — वह निर्धारित मानकों से दोगुना है। ट्रैफिक ग्रोथ रेट जहां 7.5% माना जाता है, वहीं इस मार्ग पर 15% से अधिक रिकॉर्ड किया गया है।
अब सरकार की बारी – उम्मीदें पक्की हों
सरकार ने 300 करोड़ की लागत से नए पुल और 2800 करोड़ की फोर लेन परियोजना की घोषणा की है। यह हाइवे बुढ़वल से नचना तक पहुंचेगा और नेपाल से लखनऊ को जोड़ने वाला मुख्य मार्ग बनेगा। लेकिन निर्माण की प्रक्रिया में अब तक देरी ही दर्ज की गई है — टेंडर की तिथि आगे खिसकाई जा चुकी है, और निर्माण अगले वित्तीय वर्ष तक टल चुका है।
डिजिटल हाईवे: चमकदार भविष्य या वायदे की पटरी?
प्रदेश का पहला डिजिटल हाईवे बनने जा रहा यह मार्ग अब सिर्फ सड़क नहीं रहेगा। इसमें बिछाई जाएंगी ऑप्टिकल फाइबर केबल, लगेंगे NPR कैमरे, और होगी 24 घंटे रोशनी व नेटवर्क की सुविधा। लेकिन जब धरातल पर निर्माण कार्य अभी शुरू ही नहीं हुआ, तब यह ‘डिजिटल सपना’ फिलहाल स्लो नेटवर्क में अटका है।
भाजपा सरकार के बाद बदली सेहत, अब उसी से उम्मीद
2014 के बाद भाजपा सरकार के आने पर इस राजमार्ग पर सुधार दिखा। जहां पहले 30 किलोमीटर का सफर भी गर्भवती महिलाओं या बीमारों के लिए चुनौती था, अब वह रास्ता अपेक्षाकृत सुगम हुआ है। इसी कारण लोगों की अगली उम्मीदें भी भाजपा सरकार से ही जुड़ी हैं कि यह प्रोजेक्ट सिर्फ योजना तक सीमित न रहे, बल्कि धरातल पर नजर भी आए।